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कवि वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” की एक हिंदी ग़ज़ल… तेरी यादों का समंदर विशाल होता है…

कवि वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” की एक हिंदी ग़ज़ल… तेरी यादों का समंदर विशाल होता है…

राष्ट्रीय
वीरेंद्र डंगवाल "पार्थ" देहरादून, उत्तराखंड ----------------------------------------- हिंदी ग़ज़ल -------------------------------- तेरी यादों का समंदर विशाल होता है घेर लेता है तम, तब मशाल होता है। उम्र दर उम्र की कहानियां, फसाने भी सोलहवां साल मगर बेमिसाल होता है। प्रीत की पंखुड़ियां कब से हुई फागुन हैं देखना ये है कि वो कब गुलाल होता है। नाप ली प्रीत की धरती गगन भी नाप लिया पल की मुस्कान को जीवन बेहाल होता है। बेरुखी चांद की अनजान बना फिरता है चकोर प्रीत में प्रतिदिन हलाल होता है।। ------------------------------------------------------------- कवि परिचय वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” कवि/गीतकार संप्रति – पत्रकारिता शिक्षा- एमकॉम, बीएड, पीजी डिप्लोमा इन कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग एवं मैनेजमेंट। प्रदेश महामंत्री – राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसियेशन (वॉजा इंडिय...
युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल धर्मी की एक ग़ज़ल… बस हमने हाथ न पसारा, खुद्दारियों के चलते…

युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल धर्मी की एक ग़ज़ल… बस हमने हाथ न पसारा, खुद्दारियों के चलते…

राष्ट्रीय
धर्मेन्द्र उनियाल 'धर्मी' चीफ फार्मासिस्ट, अल्मोड़ा ------------------------------------------------- - बस हमने हाथ न पसारा, खुद्दारियों के चलते, कर लिया सबसे किनारा ,खुद्दारियों के चलते! अदब के सिवा सिर झुकाना मंजूर नही हमे, हमे मंजूर है हर ख़सारा, खुद्दारियों के चलते! पहले सिर झुका लेते, शायद बच गये होते, हम लुटे हैं फिर दोबारा, खुद्दारियों के चलते! फ़क़त वो चाँद ही आसमां का चहेता बन रहा, टूटा फ़लक से सितारा, खुद्दारियों के चलते! खुशामदी को उम्रभर हमने दरकिनार ही रखा, किसी रहनुमा को न पुकारा, खुद्दारियों के चलते! मैं ज़िन्दगी की भीख़ मांग लूं, ये हो नही सकता, है ज़हर ही आख़िरी चारा, खुद्दारियों के चलते!!  ...
वरिष्ठ कवि पागल फकीरा की एक ग़ज़ल… जीवन तो है खेल तमाशा, चालाकी नादानी है…

वरिष्ठ कवि पागल फकीरा की एक ग़ज़ल… जीवन तो है खेल तमाशा, चालाकी नादानी है…

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पागल फकीरा भावनगर, गुजरात --------------------------------- ग़ज़ल जीवन तो है खेल तमाशा, चालाकी नादानी है, तब तक ज़िंदा रहते हैं, हम जब तक कि हैरानी है। आग, हवा, मिट्टी, पानी मिल कर रहते है कैसे ये, देख के ख़ुद को हैरां हूँ मैं, जैसे ख़्वाब कहानी है। मंज़र को आख़िर क्यूँ कर मैं, पहरों तकता रहता हूँ, ऊपर ठहरी चट्टानें है, राह में बहता पानी है। मुझको एक बीमारी है, तंद्रा में चलते रहने की, रातों में भी कब रुकता है, मुझ में जो सैलानी है। कल तक जिसने दुत्कारा, कह कह पागल पागल मुझको, दोस्त वही दुनिया तो अब फ़क़ीरा की दीवानी है।...

कवि जसवीर सिंह हलधर की हिंदी ग़ज़ल

राष्ट्रीय
जसवीर सिंह हलधर देहरादून, उत्तराखंड --------------------------- ग़ज़ल (हिंदी) -------------- आज तक मैंने तुझे जी भर जिया ए जिंदगी। हर रिवायत में इज़ाफ़ा ही किया ए जिंदगी। आदमी का काम है हर हाल में जीना तुझे, सोमरस या ज़हर तू डटकर पिया ए जिंदगी। भूख रोटी की मुझे हरगिज हरा पायी नहीं, ज़ख्म हर उसका इरादों से सिया ए जिंदगी। जब उजालों ने मुझे धोखा दिया है राह में, तबअँधेरों का सहारा भी लिया ए जिंदगी। कौन है खुद ही बता अभिशाप या वरदान तू? लोभ माया जाल ने तोड़ा हिया ए जिंदगी। दाग चोटों के अभी मौजूद हैं सर, भाल पर, वक्त के आघात को हँस-हँस लिया ए जिंदगी। मौत तो सच्ची सहेली तू पहेली क्यों हुई? गीत ग़ज़लों का बनी तू काफिया ए जिंदगी। जुर्म है या है सजा यह प्रश्न "हलधर " पूछता? जो भी है सब ठीक है अब शुक्रिया ए जिंदगी।।...
भावनगर गुजरात से पागल फकीरा की एक ग़ज़ल….. कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

भावनगर गुजरात से पागल फकीरा की एक ग़ज़ल….. कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

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"पागल फ़क़ीरा" भावनगर, गुजरात ------------------------------------ कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं, ख़ुद ही अपना आशियाना जला रहा हूँ मैं। अपने दुश्मनों से डरने का वक़्त नहीं अब, रोज इश्क़ के अदुओं को दहला रहा हूँ मैं। ज़माने में मुझे मारने की हिम्मत नहीं अब, ख़ुद को ही मुक़म्मल नींद सुला रहा हूँ मैं। आपकी हसीं महफ़िलों से वास्ता नहीं मेरा, रक़ीबों को ख़ुद जनाज़े में बुला रहा हूँ मैं। ज़माने की परवाह क्या करे अब फ़क़ीरा, ख़ुद के ख़्वाबों में ख़ुद को भुला रहा हूँ मैं। ----------------------------------------------------------- आशियाना- घर अदू- शत्रु, दुश्मन मुक़म्मल नींद- मौत वास्ता- मतलब रक़ीब- प्रेमिका का प्रेमी जनाज़े- अर्थी उठाने...