कवि वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” की एक हिंदी ग़ज़ल… तेरी यादों का समंदर विशाल होता है…
वीरेंद्र डंगवाल "पार्थ"
देहरादून, उत्तराखंड
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हिंदी ग़ज़ल
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तेरी यादों का समंदर विशाल होता है
घेर लेता है तम, तब मशाल होता है।
उम्र दर उम्र की कहानियां, फसाने भी
सोलहवां साल मगर बेमिसाल होता है।
प्रीत की पंखुड़ियां कब से हुई फागुन हैं
देखना ये है कि वो कब गुलाल होता है।
नाप ली प्रीत की धरती गगन भी नाप लिया
पल की मुस्कान को जीवन बेहाल होता है।
बेरुखी चांद की अनजान बना फिरता है
चकोर प्रीत में प्रतिदिन हलाल होता है।।
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कवि परिचय
वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
कवि/गीतकार
संप्रति – पत्रकारिता
शिक्षा- एमकॉम, बीएड, पीजी डिप्लोमा इन कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग एवं मैनेजमेंट।
प्रदेश महामंत्री – राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसियेशन (वॉजा इंडिय...