इंटरनेट प्रतिबंधों का रिकॉर्ड न रखने पर संसदीय समिति नाराज, उदासीनता बरतने का आरोप |
समिति ने उसकी कई सिफारिशों पर उदासीनता बरतने का भी आरोप लगाया। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी की स्थायी समिति ने दूरसंचार सेवाओं और इंटरनेट के निलंबन और इसके प्रभाव’ पर लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की।
इंटरनेट सुविधाओं में बार-बार प्रतिबंध लगाने और उसमें रुकावट आने पर संसदीय समिति ने दूरसंचार विभाग को फटकार लगाई है। समति ने कहा मामले का न तो कोई प्रयोगाश्रित अध्ययन किया गया है और न ही घटनाओं का रिकॉर्ड रखा गया है।
समिति ने उसकी कई सिफारिशों पर उदासीनता बरतने का भी आरोप लगाया। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी की स्थायी समिति ने ‘दूरसंचार सेवाओं और इंटरनेट के निलंबन और इसके प्रभाव’ पर बृहस्पतिवार को लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2012 और मार्च 2021 के बीच पूरे देश में सरकार की ओर से इंटरनेट प्रतिबंध के 518 मामले सामने आए हैं। यह पूरे विश्व में सरकार की ओर से इंटरनेट प्रतिबंध का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है, लेकिन दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के पास इस आंकड़े को सत्यापित करने का कोई तंत्र नहीं है।
खारिज किया तर्क
मिति ने इंटरनेट पर प्रतिबंध पर दूरसंचार विभाग व गृह मंत्रालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पुलिस व सार्वजनिक व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। समिति को लगता है कि राज्यों को सभी इंटरनेट शटडाउन के मामले उसी तरह से रिकॉर्ड में रखे जाने चाहिए जैसे गृह मंत्रालय के तहत एनसीआरबी अपराधिक मामलों और सांप्रदायिक दंगों के मामलों का रिकॉर्ड रखता है।
उत्तराँचल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |