युवा कवि धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली कविता …. नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी
धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी?
नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी।
समुह ‘ग’ ठप्प पडयू छ, फार्मासिस्ट मा लगी स्टे,
तुम्ही बोला दीदा भुलो कैं भर्ती मा करूं अप्ले।
M.sc, B.ed की डिग्री मेरी, कै काम नी औणी अब
कन कै बणलू मास्टर मैं, कन कै पुलिस मा सिपै।
न मैं लेखपाल बण्यो, न जेई न पटवारी।
अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी?
नौनी वाला बौना हम तैं नौनू चैंदू सरकारी।
मां बाबू न पढ़ाई-लिखाई, अपणू पेट काटी-काटी
आफ्फू थामी त्युन बल्द बाछरू, मैं थमाई त्युन पाटी
पढ़ी-लिखी तैं सोची मैन, अब त साहब बणी जौलू
शायद चकडैत बणी जाऊ, मेरी किस्मत काली लाटी ।
पर भाग मेरू सयूं सुनिंद, मैं करणू तेकी चौकीदारी
अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी?
नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी ।
होमगार्ड की भर्ती मा स्यू, तीन लाख मगाणा रयन ,
जैन नी दिनी रुपया त्युं तैं, ते त्यु भैर गाडणा रयन।
पुलिस विभाग की भर्ती मा भी, हमन देखी यू भेदभाव
मंत्री जी का रिश्तेदारू तैं, सबसी अग्नै छांगणा रयन
बस फ़ौज की नौकरी की हम, करदा रयौं तैयारी।
अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी?
नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी।
पन्द्रह पच्चीस की उम्र मेरी, इम्तियानू मा गुजरी गै,
नई भर्ती का वादा करी क, सरकार भी मुकरी गै।
भर्ती कभी ह्वई नी पूरी, मैं आवेदन ही करदू रयौं,
परीक्षा शुल्क का रुपया मेरा, सरकार त डूकरी गै।
बाबू बण्यौं न चपरासी, न मैं समीक्षा अधिकारी।
अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी?
नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी।।
अब उम्र चालीस पहुंची मेरी, न मैं घर न घाट कू,
न मैं रयूं खेती बाड़ी कू, अर न मैं पूजा पाठ कू।
नौकरी वाला सुपना दैखी, मेरा हाल कुहाल ह्वै गैन
रेशम जनू थौ मैं पहली, अब छौं टुकड़ू टाट कू।
अब मैं बेचणू गली गलियों मा भुज्जी अर तरकारी
अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी?
नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी।।
बेरोजगार साथियों के मन की बात
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