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घरेलू कामगारों के संघर्षभरे जीवन में राहत पहुंचाती हैं सरकारी योजनाएं, उमंग पोर्टल पर करें रजिस्ट्रेशन!

घरेलू कामगारों के संघर्षभरे जीवन में राहत पहुंचाती हैं सरकारी योजनाएं, उमंग पोर्टल पर करें रजिस्ट्रेशन!

घरेलू कामगारों के संघर्षभरे जीवन में राहत पहुंचाती हैं सरकारी योजनाएं, उमंग पोर्टल पर करें रजिस्ट्रेशन!

घरेलू कामगारों के संघर्षभरे जीवन में राहत पहुंचाती हैं सरकारी योजनाएं, उमंग पोर्टल पर करें रजिस्ट्रेशन!

घरेलू कामगारों के कई ऐसे मामले आए हैं, जिसमें उन्हें मुफ्त अधिवक्ता दिए गए हैं. योजनाओं के लाभ के लिए असंगठित कामगार उमंग पोर्टल पर जाकर आधार कार्ड, बैंक पासबुक की प्रति व मोबाइल नंबर के साथ निःशुल्क रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.

असंगठित घरेलू कामगार महिलाएं ज्यादातर जानकारी के अभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाती हैं. जबकि घरेलू हिंसा और कार्यस्थल पर भी प्रताड़ना का शिकार होने वाली ये महिलाएं कई तरह की चुनौतियों का सामना करती हैं. कम वेतन, समय का निश्चित ना होने से लेकर हिंसा, उत्पीड़न, काम से निकाले जाना और चोरी के झूठे इल्जाम का भी उनको सामना करना पड़ता है. राजधानी देहरादून में घरेलू कामगारों की स्थितियां और सरकारी योजनाओं में उनको क्या राहत मिल रही ?

घरेलू कामगार के लिए काम करने वाली संस्था अस्तित्व की कोऑर्डिनेटर दीपा बताती हैं कि देहरादून समेत उत्तराखंड में लाखों घरेलू कामगार है जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं. उनका कहना है कि जहां एक तरफ ये महिलाएं कई चुनौतियां झेलकर अपने बच्चों के लिए आर्थिक तंगी के चलते काम करती हैं. इन चुनौतियों के बाद वह अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी तो दे पाती हैं, लेकिन बच्चे ज्यादातर शिक्षा से वंचित रहते हैं. हालांकि सरकार की तरफ से शिक्षा के अधिकार के तहत सभी बच्चों को शिक्षा दी जाती है, लेकिन फिर भी इन घरेलू कामगार महिलाओं के बच्चे बेहतर शिक्षा नहीं ले पाते हैं.

सरकार की ओर से महिला और गरीब तबके के लिए कई योजनाएं तो चलाई जाती हैं, लेकिन जानकारी न होने के चलते हैं ये इन योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रहते हैं. वहीं इनके दस्तावेज पूरे न होने के चलते इन्हें लाभ नहीं मिल पाता है. दीपा का कहना है कि कर्नाटक में कामगारों के लिए कल्याण बोर्ड बनाया गया है. ऐसी ही कोशिश उत्तराखंड में भी की जानी चाहिए क्योंकि यहां के घरेलू कामगार के भी हिंसा उत्पीड़न के मामले सामने आते हैं. इनकी शिकायतों और कल्याण के लिए कोई निर्धारित विभाग नहीं है.

घरेलू कामगार रजनी देवी बताती हैं कि वह जहां काम करती थी वहां मालकिन छुट्टी करने पर तनख्वाह काट दी थी. अगर वह खुद भी कहीं जाती थीं, तो भी छुट्टी देने के साथ पैसे काटती थी. उन्होंने फिर वहां से काम छोड़ दिया. वहीं समाज सेविका इंदु बताती हैं कि उन्होंने कुछ संस्थाओं के साथ मिलकर घरेलू महिला कामगारों पर एक सर्वेक्षण किया जिसमें महिला कामगारों की दुर्दशा सामने आई. घर और कार्यस्थल पर उन्हें दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. चारों ओर से मजबूर हुई ये महिलाएं सरकारी योजनाओं से दूर रहती हैं क्योंकि उनमें जानकारी का अभाव होता है.

.उत्तराँचल क्राइम न्यूज़ के लिए देहरादून से ब्यूरो रिपोर्ट

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