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लाइसेंसी बंदूकें और कारतूस बेचते-बेचते बन गया तस्कर, यहां है रॉयल आर्म्स के नाम से दुकान |

लाइसेंसी बंदूकें और कारतूस बेचते-बेचते बन गया तस्कर, यहां है रॉयल आर्म्स के नाम से दुकान |

दिल्ली में पकड़े गए लोगों के अलावा अन्य कई शहरों में भी उसकी ओर से कारतूस बेचने की आशंका जताई जा रही है। स्थानीय पुलिस ने भी इस मामले में जांच शुरू कर दी है। पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, रॉयल आर्म्स देहरादून के कुल सात आर्म्स डीलरों में एक है। इसका मालिक परीक्षित नेगी पहले पटेल रोड पर दुकान चलाता था।

दशकों तक लाइसेंस लेकर बंदूक और कारतूस का कारोबार करने वाला परीक्षित नेगी देखते ही देखते जुर्म की दुनिया में हथियारों का सौदागर बन गया। पहले उसने नियमानुसार ट्रांसपोर्ट लाइसेंस लेकर कारतूस और बंदूकें बाहरी राज्यों में बेचनी शुरू कीं। इसके बाद इतना बड़ा खिलाड़ी बन गया कि महीनों से बिना लाइसेंस के कारतूसों की अवैध बिक्री करने लगा।

दिल्ली में पकड़े गए लोगों के अलावा अन्य कई शहरों में भी उसकी ओर से कारतूस बेचने की आशंका जताई जा रही है। स्थानीय पुलिस ने भी इस मामले में जांच शुरू कर दी है। पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, रॉयल आर्म्स देहरादून के कुल सात आर्म्स डीलरों में एक है। इसका मालिक परीक्षित नेगी पहले पटेल रोड पर दुकान चलाता था।

शुरुआत में वह स्थानीय लाइसेंसधारी लोगों को ही बंदूकें और कारतूस बेचा करता था। कुछ वर्षों से लाइसेंस लेकर बाहर भी कारतूस और बंदूक बेचना शुरू किया। इसके लिए वह सारे नियम-कायदे पूरा करता था। कई राज्यों में नियमानुसार कारतूस भेजे। अभी तक की जांच में अंतिम बार अमृतसर के एक दुकानदार को कारतूस बेचा थे। इसके बाद से कारतूसों को बाहर भेजने संबंधी कोई लाइसेंस नहीं लिया।

बताया जा रहा है कि अमृतसर के अलावा कई और जगहों पर भी उसने कारतूस बेचना शुरू कर दिया था। इसके लिए लंबे समय से कोई लाइसेंस भी नहीं ले रहा था। इस काम की सारी बारीकियां जानने से लाइसेंस लेना जरूरी नहीं समझा। दिल्ली पुलिस के हाथों गिरफ्तार होना इसकी तस्दीक कर रहा है। इसके पीछे लालच था या किसी गिरोह के साथ जुड़ाव, यह तो पुलिस जांच के बाद ही पता चलेगा।
कई महीनों से बंद है दुकान
राजीव गांधी कांप्लेक्स की दुकान बंद कर परीक्षित नेगी ने पिछले दिनों फालतू लाइन के पास रॉयल आर्म्स नाम से नई दुकान खोली थी। यह भी कई महीनों से बंद है। बताया जा रहा है कि जब तक इस दुकान से वैध तरीके से काम होता था तो यह समय पर खुलती-बंद होती थी, लेकिन अब कुछ महीनों से इस दुकान पर ताला लगा हुआ है।

इसके पीछे कारण यही माना जा रहा है कि चोरी-छिपे यहां से काम चल रहा था तो खोलने की क्या जरूरत। पुलिस जानकारी जुटा रही कि दुकान संचालक ने कितने कारतूस खरीदे और कितने बेचे। इसकी जानकारी प्रशासन को भी दी जा रही है।

एसटीएफ भी जुटाएगी साक्ष्य
डीजीपी अशोक कुमार ने एसटीएफ को दिल्ली पुलिस से समन्वय स्थापित करने को कहा है। बताया जा रहा है कि एसटीएफ न सिर्फ वहां के अधिकारियों के संपर्क में है बल्कि जांच करने में भी जुट गई है। स्थानीय पुलिस के साथ एसटीएफ साक्ष्य जुटा रही है।

दिल्ली पुलिस ने केवल पूछताछ के लिए दी थी जानकारी
दिल्ली पुलिस गत आठ अगस्त को देहरादून आई थी। उसके स्पेशल सेल के अधिकारियों ने क्लेमेंटटाउन थाने में आमद कराई थी। वरिष्ठ अधिकारियों को दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने बताया था कि वे अवैध रूप से कारतूस रखने वाले आरोपी को लेकर आए हैं। यहां एक आर्म्स डीलर से पूछताछ करनी है। इसके बाद उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, अब परीक्षित नेगी की गिरफ्तारी के बाद उन्हें सूचना मिली है।
कारतूस और हथियार बाहर भेजने की प्रक्रिया
यदि कोई दूसरे राज्य से हथियार और कारतूस खरीदना चाहता है तो अपने यहां के जिलाधिकारी से अनुमति लेगा। अनापत्ति प्रमाणपत्र के रूप में यह अनुमति संबंधित डीलर के जिले में जिलाधिकारी के पास पहुंचती है। इसके बाद वहां से इसे डीलर के पास भेजा जाता है। यदि कारतूस और बंदूक को बाहर भेजना होता है तो इसके लिए अलग से ट्रांसपोर्ट लाइसेंस लेना होता है। इस लाइसेंस पर ही कोई बाहरी राज्यों में हथियारों और कारतूसों को भेज सकता है।

बदमाश हो या आतंकी, आसान ठिकाना उत्तराखंड
देश की छोटी-बड़ी ज्यादातर वारदात से उत्तराखंड का नाम जुड़ना आम बात हो गई है। कभी बदमाश यहां घटना का प्लान बनाने आते हैं तो कोई वारदात को अंजाम देने के बाद यहां पनाह लेने पहुंच जाता है। इसके एक नहीं बल्कि दर्जनों उदाहरण बीते कई वर्षों में सामने आए हैं। हाल ही में सिद्धू मूसेवाला के मर्डर मामले में एक आरोपी को दून में पकड़ा गया था।

बीते कई वर्षों से उत्तर प्रदेश में पुलिस की सख्ती को भी इसका कारण माना जा रहा है। इन सब घटनाओं में पुलिस और खुफिया विभाग की विफलता सामने आती है। नया मामला दिल्ली में देहरादून से ले जाए गए कारतूसों का है। बताया जा रहा है कि दो हजार से अधिक कारतूसों को पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक शहर ले जाया जा रहा था।

पहले के कुछ मामले
2016 : पंजाब की नाभा जेल तोड़ने के मामले के मुख्य साजिशकर्ता को पुलिस ने देहरादून से गिरफ्तार किया।
2018 : प्रेमनगर क्षेत्र के एक इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्र का नाम आतंकी संगठन से जुड़ा।
2020 : पुलवामा में आतंकी घटना के बाद भी कुछ कश्मीरी छात्रों का देहरादून से नाम जुड़ा, यहां करते थे पढ़ाई।
2022 : पठानकोट में बीते वर्षों में हुए हमले के पनाहगारों को उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर नगर से पकड़ा गया।
2021 : पहलवान सुशील कुमार अपने साथी की हत्या करने के बाद काफी दिनों तक हरिद्वार में छुपा रहा।

उत्तराँचल क्राइम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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