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चीन के साथ परस्पर सम्मान के रिश्तों के इच्छुक, भारत के पास अब कई रक्षा विकल्प |

चीन के साथ परस्पर सम्मान के रिश्तों के इच्छुक, भारत के पास अब कई रक्षा विकल्प |

चीन के साथ परस्पर सम्मान के रिश्तों के इच्छुक, भारत के पास अब कई रक्षा विकल्प |

चीन के साथ परस्पर सम्मान के रिश्तों के इच्छुक, भारत के पास अब कई रक्षा विकल्प |

जयशंकर ने कहा कि हम अब उन कुछ देशों में से एक हैं, जिनके पास हमारे सामने रक्षा विकल्पों की एक बहुत विस्तृत श्रृंखला है। संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लेकर उन्होंने कहा कि इन्हें हमेशा खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन भारत यह भी जानता है कि ये सुधार आसान नहीं हैं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी 11 दिनी अमेरिका यात्रा के समापन पर वॉशिंगटन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश की विदेश नीति को लेकर समग्र विचार रखे। उन्होंने चीन को लेकर कहा कि भारत उसके साथ परस्पर सम्मान, संवेदनशीलता और आपसी हित पर आधारित रिश्ते चाहता है। भारत की रक्षा को लेकर उन्होंने एक समय था, जब हमारे पास विकल्प कम थे, लेकिन आज अनेक विकल्प खुले हैं।

जयशंकर ने कहा कि हम अब उन कुछ देशों में से एक हैं, जिनके पास हमारे सामने रक्षा विकल्पों की एक बहुत विस्तृत श्रृंखला है। संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लेकर उन्होंने कहा कि इन्हें हमेशा खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन भारत यह भी जानता है कि ये सुधार आसान नहीं हैं।
बता दें, जयशंकर ने अपनी लंबी अमेरिका यात्रा के पहले चरण के दौरान न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में भाग लिया और विश्व के कई नेताओं से मुलाकात की। दूसरे चरण में वे अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन पहुंचे और वहां विदेशी मंत्री एंटनी ब्लिंकन, रक्षा मंत्री ऑस्टिन, एनएसए जेक सुलिवन समेत कई अमेरिकी नेताओं से आपसी व वैश्विक मुद्दों पर बात की।

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जयशंकर ने बुधवार को वॉशिंगटन में भारतीय पत्रकारों के एक समूह से कहा कि हम चीन के साथ लगातार रिश्तों में सुधार के लिए प्रयासरत हैं। ऐसा रिश्ता जो आपसी संवेदनशीलता, सम्मान और आपसी हित पर बना हो। चीन का हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई देशों के साथ क्षेत्रीय विवाद है और वह विशेष रूप से विवादित दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की सक्रिय नीति का विरोध करता रहा है। चीन से निपटने को लेकर भारत और अमेरिका की योजना पर किए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों देश हिंद-प्रशांत की बेहतरी व उसे मजबूत बनाने के साझा उद्देश्य रखते हैं।

उन्होंने कहा कि जहां भारतीय और अमेरिकी हित की बात आती है, तो मुझे लगता है कि यह हिंद-प्रशांत की स्थिरता, सुरक्षा, प्रगति, समृद्धि व विकास पर आधारित है। यहां तक कि यूक्रेन के मामले में भी क्योंकि यह युद्ध लंबे समय से लड़ा जा रहा है और वास्तव में यह लोगों के दैनिक जीवन व दुनियाभर में अशांति उत्पन्न कर सकता है। जयशंकर ने कहा कि दुनिया बदल गई है और हर कोई इस बात की सराहना करता है कि कोई भी देश खुद अकेले अंतरराष्ट्रीय शांति और आम लोगों की भलाई की जिम्मेदारी या बोझ नहीं उठा सकता है।

यूक्रेन को लेकर भारत के रुख में बदलाव नहीं
जयशंकर ने यह भी कहा है कि समरकंद में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर जो टिप्पणी की है, वह इस मुद्दे पर भारत के रुख में परिवर्तन का संकेत नहीं माना जाना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि भारत लगातार यह कहता रहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जल्द से जल्द युद्ध समाप्त होना चाहिए। पीएम मोदी ने पुतिन से कहा था कि ‘यह युद्ध का समय नहीं है‘। इसका अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में विचार के लिए उठेगा। इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि आप इंतजार करें और देखें कि वहां हमारे राजदूत क्या कहते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच समरकंद में 16 सितंबर को हुई बैठक के बारे में जयशंकर ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद दोनों नेताओं के बीच प्रत्यक्ष रूप से यह पहली बातचीत थी। उन्होंने कहा कि आमने सामने की बैठक के बाद प्रेस को संबोधित किया गया था और हम उस मौके का वीडियो देख सकते हैं। जयशंकर ने कहा कि यह बिलकुल स्वाभाविक था कि ऐसे मौके पर भारत के प्रधानमंत्री और रूस के राष्ट्रपति की भेंट होगी तो इन विषयों पर चर्चा होनी ही थी। जयशंकर ने कहा कि समरकंद में पुतिन से हुई बातचीत से यूक्रेन पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
सुरक्षा परिषद में सुधार को नकार नहीं सकते
विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता को हमेशा खारिज नहीं किया जा सकता है। सुरक्षा परिषद में वर्तमान में पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका हैं। भारत विश्व संस्था के 10 अस्थायी सदस्यों में से एक है। सिर्फ स्थायी सदस्यों के पास ही किसी भी मूल प्रस्ताव को वीटो करने का अधिकार है। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में लंबित सुधारों पर कार्रवाई तेज करने को लेकर जोर देता रहा है। भारत का कहना है कि वह स्थायी सदस्य बनने का हकदार है।

उत्तराँचल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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