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आज तक दिल में है कसक, साथ गए जवानों को वापस न ला सके, पूर्व सैनिकों ने बयां किया दर्द|

आज तक दिल में है कसक, साथ गए जवानों को वापस न ला सके, पूर्व सैनिकों ने बयां किया दर्द|

यह 18 मार्च 1984 की बात है जब 19-कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों को गुप्त सूचना के आधार पर अचानक ग्यांग्लू (सियाचिन ग्लेशियर) जाना पड़ा। यह देश की वह पलटन थी जो इतनी ऊंचाई पर पहली बार गई। अभियान में अफसर समेत 900 सैनिक शामिल थे, लेकिन 29 मई 1984 की रात हमारे लिए बेहद कठिन रही।

20 सदस्यीय दल (एक अफसर और शहीद लांसनायक चंद्रशेखर समेत 19 जवान) बर्फ की पहाड़ी दरकने से उसके नीचे दब गया। पूर्व सैनिकों ने अमर उजाला से अपने दर्द को साझा करते हुए कहा कि दिल आज भी उस हादसे पर रोता है जब हम साथ गए सैनिकों को वापस नहीं ला सके थे।

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शहीद लांसनायक चंद्रशेखर के घर पहुंचे 19-कुमाऊं रेजीमेंट के कैप्टन दीवान सिंह अधिकारी (66) ने बताया कि कर्नल डीके खन्ना के नेतृत्व में इस अभियान में 900 जवान शामिल रहे जो 18 मार्च 1984 को खेरू (श्रीनगर) से ग्लेशियर के बेस कैंप के लिए रवाना हुए। बेस कैंप तक पहुंचने में जवानों को करीब 16 दिन लगे।

29 मई 1984 को एक अफसर और 18 जवान पेट्रोलिंग के लिए सियाचिन ग्लेशियर में टॉप पर पोस्ट बनाने गए थे। रात करीब 12 बजे बाद इस दल से संपर्क नहीं हो पाया जिसके बाद नीचे बेस कैंप में मौजूद सैनिक चिंतित हो गए।

अगले दिन 30 मई की सुबह पता चला कि रात में पूरा दल बर्फ की पहाड़ी में दब गया। उन्होंने बताया कि यह दर्द आजतक सालता है कि हम अपने साथियों के साथ न लौट सके।

अगले दिन 30 मई की सुबह पता चला कि रात में पूरा दल बर्फ की पहाड़ी में दब गया। उन्होंने बताया कि यह दर्द आजतक सालता है कि हम अपने साथियों के साथ न लौट सके।

उत्तराँचल क्राइम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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