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उत्तराखंड में पंच केदार: पांडवों के वंशजों ने करावाया था निर्माण; भगवान शिव के अंगों से जुड़ा है यहां का रहस्य !

देहरादून: हिमालय में स्थित शैव संप्रदाय के शिव को समर्पित पांच मंदिरों के समूह को पंच केदार कहा गया है। माना जाता है कि इन सभी मंदिरों का निर्माण पांडव व उनके वंशजों ने करवाया था। इनमें से केदारनाथ, द्वितीय केदार मध्यमेश्वर, तृतीय केदार तुंगनाथ व चतुर्थ केदार रुद्रनाथ धाम के कपाट शीतकाल में बंद रहते हैं। पंचम केदार कल्पेश्वर ही एकमात्र धाम है, जो वर्षभर दर्शन के लिए खुला रहता है।

 

इनमें केदारनाथ मुख्य धाम है, जो हिमालय के प्रसिद्ध चारधाम में से एक है। केदारनाथ में भगवान शिव वृषभ (बैल) की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। जबकि, मध्यमेश्वर में भगवान की नाभि, तुंगनाथ में भुजा, रुद्रनाथ में मुख और कल्पेश्वर में जटा दर्शन होते हैं।

 

केदारनाथ धाम

समुद्रतल से 11657 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में आता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल केदारनाथ धाम में भगवान शिव के बैल रूप में पृष्ठ भाग के दर्शन होते हैं। त्रिकोणात्मक स्वरूप में यहां पर भगवान का विग्रह है। मंदाकिनी व सरस्वती नदी के संगम पर पत्थरों से बने कत्यूरी शैली के केदारनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों के वंशज जन्मेजय ने कराया था, जबकि आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर की विशेषता यह है कि वर्ष 2013 की भीषण आपदा में भी उसे आंच तक नहीं आई।

 

तुंगनाथ धाम

तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ का धाम रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 11349 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस धाम में बैल रूपी शिव का धड़ प्रतिष्ठित है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से उत्तराखंड शैली में निर्मित यह मंदिर बेहद रमणीक स्थल पर निर्मित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया। वर्तमान मंदिर को एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं। शीतकाल में यहां भी छह माह के लिए कपाट बंद रहते हैं। तब मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है।

 

कल्पेश्वर धाम

पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर धाम विख्यात है। समुद्रतल से 2134 मी. की ऊंचाई पर चमोली जिले में स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए दस किमी का सफर पैदल तय करना पड़ता है। कल्पेश्वर धाम को कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां वर्षभर शिव के जटा रूप में दर्शन होते हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तप किया था। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथÓ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

मध्यमेश्वर धाम

रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 11470 फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित द्वितीय केदार मध्यमेश्वर धाम में बैल रूप में भगवान शिव के मध्य भाग के दर्शन होते हैं। दक्षिण भारत के शैव पुजारी केदारनाथ की तरह यहां भी पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता है कि यहां के जल की कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। शीतकाल में छह माह यहां कपाट बंद रहते हैं।

 

रुद्रनाथ धाम

चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ जगप्रसिद्ध हैं। यह मंदिर चमोली जिले में समुद्रतल से 11808 फीट की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है। बुग्याल के बीच गुफा में भगवान शिव के मुखारबिंद यानी मुख दर्शन में होते हैं। भारत में यह अकेला स्थान है, जहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। एकानन के रूप में रुद्रनाथ, चतुरानन के रूप में पशुपतिनाथ नेपाल और पंचानन विग्रह के रूप में इंडोनेशिया में भगवान शिव के मुख दर्शन होते हैं। रुद्रनाथ धाम के लिए ज्यादातर तीर्थयात्री गोपेश्वर के निकट सगर गांव से यात्रा शुरू करते हैं। शीतकाल में कपाट बंद होने पर गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा होती है।

 

 

उत्तरांचल क्राइम न्यूज के लिए उत्तराखंड से ब्यूरो रिपोर्ट

 

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