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वरिष्ठ कवि जीके पिपिल की एक ग़ज़ल.. वही जिन्दगी वही जिन्दगी के समझौते हैं…

वरिष्ठ कवि जीके पिपिल की एक ग़ज़ल.. वही जिन्दगी वही जिन्दगी के समझौते हैं…

राष्ट्रीय
जीके पिपिल देहरादून, उत्तराखंड -------------------------------- गज़ल --------------------- वही जिन्दगी वही जिन्दगी के समझौते हैं कभी करे जाते हैं कभी खुदबखुद होते हैं। हम सभी क़िरदार हैं जिन्दगी के नाटक में जो उजाले में हँसते हैं तो अँधेरे में रोते हैं। खिलाड़ी तो कोई और है हम तो मोहरे हैं जो बिसात की चादर पे हार जीत ढोते हैं। समन्दर की छोटी बड़ी हर लहर की तरह हम साँसों की डोर में सुख-दुख पिरोते हैं। नसीब मुक़द्दर ये मन बहलाने की बातें हैं हम काटते वही हैं जो भी कर्मो में बोते हैं। ज़िंदगी का अंत जब किसी को पता नहीं फिर क्यों हम भविष्य के सपने सँजोते हैं। किनारों पर तलाशने से कुछ नहीं मिलेगा मोती उन्हें मिले हैं जो लगाते गहरे गोते हैं। कोई कितने भी हष्टपुष्ट और बलशाली हैं मौत के आगे तो हम चने के दाने थोते हैं।...