उत्तराखंड : स्वास्थ्य-शिक्षा-रोजगार सब बेहाल, नहीं सुधरे हाल जिले से 41 फीसदी आबादी कर चुकी है पलायन
पिथौरागढ़ जिले का 24 फरवरी को 64वां जन्मदिन है। नेपाल और चीन सीमा से सटे इस जिले के कई गांवों ने भले ही नगरों का रूप ले लिया हो लेकिन आज भी कई इलाकों में लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सड़क सहित अन्य सुविधाओं के अभाव में पलायन से गांव खाली हो गए हैं। शिक्षा से लेकर रोजगार तक के लिए शहरों की खाक छानना लोगों की नियति बनी हुई है। 24 फरवरी 1960 को अल्मोड़ा से अलग कर पिथौरागढ़ जिले का गठन हुआ था। जीवन चंद्र पांडेय जिले के पहले डीएम थे।
जिले के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का अभाव है। इस कारण जिन स्कूलों में कभी छात्र संख्या 800 से 1200 होती थी वहां 100 से 150 छात्र संख्या रह गई है। पिथौरागढ़ महाविद्यालय को कैंपस बना दिया है, लेकिन अभी तक प्राध्यापकों की तैनाती नहीं हुई है।
जनता आज भी इलाज के लिए जिला अस्पताल पर ही निर्भर है। जिला अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ का पद सात वर्षों से खाली है। जिले के ब्लॉक या तहसील मुख्यालयों में खोले गए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। ज्यादातर मामलों में मरीजों को हायर सेंटर रेफर किया जाता है। कुछ समय पूर्व सरकार ने बेस अस्पताल के संचालन के लिए पदों के प्रस्ताव स्वीकृति दे दी है, लेकिन अभी तक नियुक्ति नहीं हो पाई है। संवाद
ये दिक्कतें भी हैं
पिथौरागढ़, डीडीहाट, बेड़ीनाग में करोड़ों खर्च करने के बाद भी लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है।
जिले की अधिकतर सड़कें बदहाल हैं। लोगों को जान जोखिम में डालकर आना-जाना पड़ता है। नगर की सड़कें कभी गड्ढा मुक्त नहीं हो पाती हैं।
नवगठित तहसीलों में एसडीएम तो दूर नायब तहसीलदार तक तैनात नहीं हैं। अधिकतर तहसील प्रभारियों के भरोसे चल हो रही हैं।
जिले में इस समय पंजीकृत वाहनों की संख्या 60 हजार से अधिक पहुंच चुकी है। वाहनों को पार्क करने के लिए नगरों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
जंगली जानवरों से किसान त्रस्त हैं लेकिन किसानों को राहत देने के लिए अब तक ठोस नीति नहीं बन सकी है।
जिला पर्यटन की दृष्टि से बेहद उपयुक्त है लेकिन मुनस्यारी, चौकोड़ी के अलावा पर्यटकों की पहुंच के कोई ठोस प्रयास नहीं हुए।
उत्तरांचल क्राइम न्यूज़ के लिए देहरादून से ब्यूरो रिपोर्ट |