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उत्तराखंड: बिन्दुखत्ता की आवाज़ विधानसभा तक पहुंचाने की मांग, कांग्रेस नेता प्रमोद कलौनी ने नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या और उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी को भेजा पत्र।

उत्तराखंड विधानसभा के आगामी सत्र में वनाधिकार अधिनियम 2006 और बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम का दर्जा दिलाने का मुद्दा जोर पकड़ सकता है। नैनीताल ज़िला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष प्रमोद कलौनी ने इस संबंध में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या और उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि इस अहम विषय को सदन में उठाया जाए।कलौनी ने अपने पत्र में कहा कि वर्ष 2006 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पारित वनाधिकार अधिनियम का उद्देश्य वनभूमि पर पीढ़ियों से निर्भर समुदायों को न्याय दिलाना था। लेकिन उत्तराखंड में इस कानून का क्रियान्वयन लगभग ठप पड़ा है।
देशभर में जहां अब तक 26 लाख से अधिक दावे स्वीकृत हो चुके हैं और 1600 से ज्यादा वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा मिल चुका है, वहीं उत्तराखंड में मात्र 185 दावे स्वीकृत हुए हैं और केवल 6 ग्रामों को ही राजस्व ग्राम घोषित किया गया है। “विडंबना यह है कि इनमें से किसी को भी अब तक एक इंच भूमि पर अधिकार पत्र नहीं मिला,”कलौनी ने कहा।उन्होंने विशेष रूप से नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता क्षेत्र का उल्लेख करते हुए बताया कि यहां के लोग सभी पात्रताएं पूरी करने के बावजूद राजस्व ग्राम की अधिसूचना के इंतजार में हैं। जिला स्तरीय वनाधिकार समिति द्वारा स्वीकृति के बाद भी एक वर्ष से अधिक समय से शासन में फाइल लंबित है, जिस पर न कोई आपत्ति है और न कोई प्रगति।कलौनी ने बताया कि बिन्दुखत्ता के स्थानीय निवासी अपनी मांग को लेकर लगातार सक्रिय हैं — हर रविवार अलग-अलग स्थानों पर “चाय पर चर्चा” कार्यक्रम आयोजित कर शासन से राजस्व ग्राम की घोषणा की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार अब तक मौन है।
उन्होंने नेता प्रतिपक्ष और उप नेता प्रतिपक्ष से आग्रह किया है कि इस विषय को विधानसभा सत्र में उठाया जाए ताकि वनाधिकार अधिनियम की अवहेलना और बिन्दुखत्ता की अनदेखी पर सरकार जवाबदेह बने।“उत्तराखंड 71 प्रतिशत वन क्षेत्र वाला राज्य है, यहां वनाश्रितों की संख्या सबसे अधिक है। ऐसे में वनाधिकार कानून की प्रगति शून्य होना सरकार की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है।”

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