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हरीश कण्डवाल ‘मनखी’ की कहानी… पैतृक भूमि का सौदा

हरीश कण्डवाल ‘मनखी’ की कहानी… पैतृक भूमि का सौदा

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हरीश कण्डवाल 'मनखी' पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड -------------------------------------------------------------- पैतृक भूमि का सौदा ( कहानी)  रमन के पिताजी बचपन में ही अपने चाचा जी के साथ मुंबई आ गये थे, उसके बाद वह मुबई के होकर रह गये। रमन ने जब भी गॉव जाने की बात कही तो उसके पिताजी हमेशा यह कहकर टाल देते कि वहॉ तो जंगली जानवर रहते हैं, साथ ही वहॉ प्राकृतिक आपदा आती रहती है, वहॉ जाकर क्या करना है। रमन के बालमन में अपने पैतृक गॉव के प्रति एक डर सा बैठ गया। रमन की शादी हो गई वह कभी अपने गॉव नहीं जा पाया। शादी के बाद रमन की एक बेटी और एक बेटा हो गया, उनको तो कभी गॉव का अता पता ही नहीं था। वहीं रमन के एक चाचा जो दिल्ली में रहते थे वह कभी कभी फोन कर लेते थे। वक्त बीतता गया, सक्षम भी बड़ा हो गया, वह कम्प्यूटर इंजीनियर का कोर्स पूरा करने के बाद वह नोयड़ा में प्रतिष्ठित कंपनी में कम्प्यूटर इ...

चलो चले गांव की ओर… सातवीं किश्त… जंगल में आग लगाकर फारेस्टर, रेंजर से लेकर डीएफओ तक कूटते हैं चांदी

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नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर... गतांक से आगे.. सातवीं किश्त शाम की आरती के बाद रोहतक से आए मन्ना काका ने खास खास लोगों को अपने यहां जिमा लिया। आज भी लगभग कल जैसा ही डायरेक्टर बोडा के कमरे सा सीन था। बस अंतर इतना था कि मन्ना काका के पुराने मकान में इतनी कुर्सियां नहीं थी कि सभी के ऊपर बैठने की व्यवस्था हो पाती सो बरामदे में चटाई दरी बिछाकर इंतजाम किया गया था। यूं भी मन्ना काका का पुश्तैनी मकान सालभर तो बंद ही रहता है बस, गर्मियों की छुट्टी में जब परिवार पूजा में शामिल होने आता है तो ही दरवाजे के कुण्डी खुलते हैं। इसलिए घर में केवल बहुत ही जरूरत की चीजें जमा कर रखी हैं बस काम चलाने भर के लिए। खैर दावत के लिए बीच में अखबार को दस्तरखान जैसा बिछाया गया। उसके ऊपर कांच के गिलास, पानी का जग,थाली में प्याज खीरे का सलाद, प्लेट में हरी चटनी वाला नमक व सेब संतरे क...
नीलम पांडेय नील… नकारात्मक प्रवृति के लोगों को दूर रखें या स्वयं उनसे दूर हो जाएं

नीलम पांडेय नील… नकारात्मक प्रवृति के लोगों को दूर रखें या स्वयं उनसे दूर हो जाएं

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नीलम पांडेय नील देहरादून, उत्तराखंड -------------------------- सहज ध्यान की प्राप्ति के लिए एक बात यह भी जरूरी है कि अपने आसपास से नकारात्मक प्रवृति के लोगों को दूर रखें या जो हमारे लिए अच्छी भावना ही नहीं रखते उनको पहचान कर स्वयं उनसे दूर हो जाएं अन्यथा मन की सहजता, एकाग्रता बाधित होती है। क्योंकि जो हमारे नहीं होते हैं, वो लाख कोशिश के बाद भी हमारे नहीं रहते हैं। चाहे उनसे हमारे नजदीकी संबंध हों। उनके मन में जमी खलिश को हमारे मान मनुहार से कोई फायदा नहीं होता है। कभी-कभी हम ऐसे रिश्तों के लिए अपने जीवन के उन पलों, सालों को बर्बाद कर देते हैं जो हमारे लिए बेहद कीमती हो सकते थे। हम उनकी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं, लेकिन फिर हमको पता चलता हैं हम अब भी उनकी नजर में नकारे ही हैं, मूर्ख हैं। वे अपने तानों की गाहेबगाहे सौगात तो दे देते हैं किन्तु प्रेम से कभी सर प...

प्रतिभा की कलम से… अरे, मैं हमेशा से थोड़ी न अंधी थी..

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प्रतिभा की कलम से देहरादून, उत्तराखंड ------------------------------------------- मुक्ति ---------------------- गंगा की अंधी बुआ के गांव में एक घर के आगे बड़ा-सा खलिहान था। शाम के समय उसके सारे संगी-साथी वहां जमा होकर खेलते थे। खलिहान वाले घर की लड़की भी उन बच्चों में शामिल थी। नाम था गंगा। गंगा उम्र में सब बच्चों से बड़ी थी। रिश्ते में वह किसी की बुआ लगती थी तो किसी की दीदी। लेकिन, खेल में सारे बच्चे उसे गंगा कहकर ही बुलाते थे। गंगा के घर में बहुत सारे लोग थे। उनमें बस एक ही ऐसी थी जो नन्ही के दिल में हर वक्त बैठी रहती-गंगा की अंधी बुआ। ज्यादा वृद्ध तो न थीं, लेकिन आंगन के एक कोने में लाचार सी बैठी रहने के कारण वृद्धा ही नजर आती। उस घर से आगे से गुजरने वाला लगभग हर व्यक्ति उन्हें आवाज देता हुआ जाता था। उनकी आवाज ज्यादातर औपचारिक ही हुआ करती थी, लेकिन बुआ आत्मीयता से प्रत्य...
पुण्यतिथि पर विशेष: श्रीदेव ‘सुमन’ ने 14 वर्ष की किशोरावस्था में ‘नमक सत्याग्रह’ में लिया था भाग

पुण्यतिथि पर विशेष: श्रीदेव ‘सुमन’ ने 14 वर्ष की किशोरावस्था में ‘नमक सत्याग्रह’ में लिया था भाग

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सुशील बहुगुणा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड --------------------------------- श्रीदेव ‘सुमन’ का जन्म उत्तराखंड के टिहरी जिले के बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में 25 मई, 1916 को तारादेवी की गोद में हुआ था. इनके पिता  हरिराम बडोनी क्षेत्र के प्रसिद्ध वैद्य थे. प्रारम्भिक शिक्षा चम्बा और मिडिल तक की शिक्षा उन्होंने टिहरी से पाई. संवेदनशील हृदय होने के कारण वे ‘सुमन’ उपनाम से कवितायें लिखते थे. अपने गांव तथा टिहरी में उन्होंने राजा के कारिंदों द्वारा जनता पर किये जाने वाले अत्याचारों को देखा. 1930 में 14 वर्ष की किशोरावस्था में उन्होंने ‘नमक सत्याग्रह’ में भाग लिया. थाने में डंडो से पिटाई कर उन्हें 15 दिन के लिये जेल भेज दिया गया,पर इससे उनका उत्साह कम नहीं हुआ. अब तो जब भी जेल जाने का आह्वान होता, वे सदा अग्रिम पंक्ति में खड़े हो जाते. पढ़ाई पूरी कर वे हिन्दू नेशनल स्कूल, देहरादून में पढ़ाने...
भाजपा अंतिम व्यक्ति तक संसाधनों की हिस्सेदारी की पक्षधर: गामा

भाजपा अंतिम व्यक्ति तक संसाधनों की हिस्सेदारी की पक्षधर: गामा

राष्ट्रीय
शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (shabd rath news)। आजादी के बाद से कांग्रेस की केंद्र व राज्यों की सरकारों ने जनता पर दया की और भाजपा सरकारों ने जनता के साथ न्याय किया। यह बात देहरादून के महापौर सुनील उनियाल गामा ने भाजपा केदार मंडल की कार्यसमिति में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के दौरान कही। गामा ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस में जमीन आसमान का अंतर है। कांग्रेसी राजनीति के लिए राजनीति करते हैं और हम समाज के लिए क्योंकि, हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के अनुयाई हैं। हम समाज के अंतिम व्यक्ति तक संसाधनों की हिस्सेदारी के पक्षधर हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं को याद दिलाया कि किस तरह कांग्रेसी सरकारों में मरीज के इलाज के लिए सांसदों, विधायकों व समाज के प्रभावशाली लोगों के चक्कर काटने पड़ते थे। लेकिन, भाजपा सरकार ने आयुष्मान कार्ड के माध्यम से वह व्यवस्था ही समाप्त कर दी, अब व्यक्ति का इला...
भावनगर गुजरात से पागल फकीरा की एक ग़ज़ल….. कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

भावनगर गुजरात से पागल फकीरा की एक ग़ज़ल….. कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

राष्ट्रीय
"पागल फ़क़ीरा" भावनगर, गुजरात ------------------------------------ कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं, ख़ुद ही अपना आशियाना जला रहा हूँ मैं। अपने दुश्मनों से डरने का वक़्त नहीं अब, रोज इश्क़ के अदुओं को दहला रहा हूँ मैं। ज़माने में मुझे मारने की हिम्मत नहीं अब, ख़ुद को ही मुक़म्मल नींद सुला रहा हूँ मैं। आपकी हसीं महफ़िलों से वास्ता नहीं मेरा, रक़ीबों को ख़ुद जनाज़े में बुला रहा हूँ मैं। ज़माने की परवाह क्या करे अब फ़क़ीरा, ख़ुद के ख़्वाबों में ख़ुद को भुला रहा हूँ मैं। ----------------------------------------------------------- आशियाना- घर अदू- शत्रु, दुश्मन मुक़म्मल नींद- मौत वास्ता- मतलब रक़ीब- प्रेमिका का प्रेमी जनाज़े- अर्थी उठाने...
गुरु पूर्णिमा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी देशवासियों को शुभकामनाएं

गुरु पूर्णिमा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी देशवासियों को शुभकामनाएं

धर्म, राष्ट्रीय
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहा जाता है. इस दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं. बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं. ब्रज में इसे 'मुड़िया पूनों' कहा जाता है. इस दिन गुरु की पूजा की जाती है. पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. वैसे तो 'व्यास' नाम के कई विद्वान् हुए हैं, परंतु व्यास ऋषि जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है. नई दिल्ली: गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं. आज पीएम मोदी ने आषाढ़ पूर्णिमा-धम्मचक्र दिवस कार्यक्रम में संबोधित भी किया. पीएम मोदी ने कहा, 'आप सभी को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस और आषाढ़ पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं. आज हम गुरु-पूर्णिमा भी मनाते हैं और आज के ही दिन भगवान बुद्ध ने बुद्धत्व की प्राप्ति के...

चलो चले गांव की ओर… छठी किश्त… पलायन का दंश झेल रहे गावों में मरहम का काम कर रहे धार्मिक आयोजन

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नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर..... गतांक से आगे... छठी किश्त आज कथा सुनने के लिए मंदिर प्रांगण में बहुत भीड़ जुटी थी। हांलाकि, हमारे गांव के कुछ परिवार जिनके पास ज्यादा छुट्टियां नहीं बची थीं, वापस जा चुके थे। लेकिन, उनकी जगह कुछ नये लोग भी आ पहुंचे थे। फिर इस समय तक आस-पास के सभी गांवों में व्यास जी की प्रसिद्धि भी फैल चुकी थी कि बहुत बढ़िया कथावाचक आए हुए हैं। इस समय वे शिव शंकर जी के भगवान कृष्ण‌ के बाल स्वरूप के दर्शन करने के दृश्य का वर्णन कर रहे थे। माता यशोदा जी से शिव जी अनुनय कर रहे हैं कि मुझे अपने लल्ला के दर्शन कर लेने दे मैय्या। यशोदा जी कह रही हैं तोय देख के मोरो लल्ला डर जावेगो। इस बीच पीछे से हलचल हुयी, देखा तो गांव की कुछ लड़कियां सजी धजी पालने में एक छोटे शिशु को लेकर आ रही हैं। अरे ये तो पल्ले खोले के कुंजी का बच्चा है। सिर पर छोटा सा...

युवा कवि विनय अन्थवाल की भारतभूमि को समर्पित रचना.. विश्वगुरु था मेरा भारत पावन सुखमय वसुधा में..

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विनय अन्थवाल देहरादून, उत्तराखण्ड ----------------------------------------- विश्व गुरु भारत --------------------------------- विश्वगुरु था मेरा भारत पावन सुखमय वसुधा में ज्ञानालोक से आलोकित था मेरा भारत वसुधा में। ज्ञान यहाँ का आभूषण था ज्ञान गंगा बहती थी। भारत माता ही इस जग में सबसे ऊपर रहती थी । दिव्यगुणों से सम्पन्न मानव, भारत में ही रहते थे सारे जग में केवल इसको, देवभूमि भी कहते थे। सबसे पहले ज्ञान का दीपक, भारत ने जलाया था। अन्धे जग को भारत ने ही, ज्ञानमार्ग बताया था। विश्वगुरु है भारत अब भी मानव हम ही बदल गए भारत भू में रह रहकर भी हम खुद को ही अब भूल गए। विशिष्ट मानव भारतवासी हम जैसा कोई और नहीं आर्षवंशज हैं हम सब ही विश्वगुरु कोई और नहीं। आज भी भारत चमक रहा है सारे जग में निखर रहा है। सद्ज्ञान का दीपक आज भी भारत सारे जग में जला रहा...