चलो, चलें गांव: जून महीने में उत्सव का माहौल हमारे गांव में…
नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड
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चलो, चलें गांव ——–! पहली किश्त
यूं तो साहब पलायन की मार झेलते हमारे पहाड़ के अधिकांश गांव लगभग खाली होने के कगार पर हैं, फिर भी कुछ हैं कि शहर के खिलाफ तान मारे हुए हैं।
रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में अधिकांश ने यहां से मैदान का रुख किया तो वहीं के होकर रह गये। एक जाकर मैदानी शहर में व्यवस्थित हुआ तो दूसरा भी बेहतरी के लिए कसमसाया। फिर तीसरा क्यों पीछे रहता। इस तरह एक के पीछे एक करके सारे छोड़ते चले गए अपने गांव को।
नतीजतन गांव सूने हो गये।अधिकांश मकान खण्डहरों में तब्दील हो गए।जहां चौक में कभी चहल पहल रहती थी अब सन्नाटा पसरा दिखता है। गांव के पानी, पंधेरे, पगडण्डी, चौपालें सब सूनी हो गयीं। खाली घरों के आसपास झाड़ झंकार उगआयी हैं। भुतहे मकान देखकर मन रोने को होता है। गांव का सूनापन डराता है। कभी सैकड़ों की बस्ती वाले गांवों में अब बमुश्किल आधा दर्जन बाशिंदे भी नहीं रह गए हैं।
फिर भी कुछ जांबाज हैं कि टक्कर लिए हैं पलायन के खिलाफ, डटे हैं गांव में। शहर की चकाचौंध, भौतिकवादी सुविधाएं उनके हौसले न डिगा सकी हैं।
ये ठेठ गंवार कभी कभार शहर जाते भी हैं अपनों से मिलने, शादी बारात या सुख दु:ख में शामिल होने तो दूसरे से तीसरे दिन पैर नहीं टिकते इनके वहां।
भई हमें तो अपना गांव ही प्यारा है हम चले अपने पहाड़ की ओर। फिर अनासक्त भाव से शहर को अलविदा कहते हुए अपने स्वर्ग में लौट आते हैं।
उधर, नगरीय मृग मरीचका में उलझा मानस चाहता तो बहुत है गांव लौटना परंतु शहर के मकड़जाल से निकलना उसे अब असंभव लगता है। सकून की तलाश में उसने एक नायाब तरीका खोज निकाला है, वह है गांव में पूजा।
जनाब हमारे गांव में भी हर साल जून के महीने में एक सप्ताह की पूजा परम्परा स्थापित हो गयी है। जून के महीने में स्कूल के बच्चों की छुट्टियां पड़ जाती हैं वे भी आउटिंग में जाने को लालायित रहते हैं। शहरों के पर्यटक स्थलों की भीड़ से उकताए पर्वतीय बंधुओं ने अब अपने गांव की ओर रुख कर दिया है।
गांव में रह रहे कुटुम्ब परिवार के अपनों से वे अनुनय करते हैं,भई गांव के देवी देवताओं को पूजो, सामूहिक पूजा पाठ करो, अनुष्ठान करो, आयोजन करो दौड़-भाग मेहनत तुम्हारी आर्थिक सहयोग हमारा रहेगा।इस प्रकार के धर्मनिष्ठ पारस्परिक अनुबंध से अब हर साल हमारे गांव में जून माह में पूजा होने लगी है।
अप्रवासी बंधुओं के सहयोग से गांव में कुछ साल पहले देवी भगवती का मंदिर बनवा गया। फिर एक ने सुझाव दिया कि शक्ति के साथ शिव मंदिर भी होना चाहिए तो छोटा सा शिवालय भी स्थापित हुआ। बाद में बगल में एक यज्ञशाला भी बनवा दी गयी। इस बीच एक परिवार ने हनुमान जी की मूर्ति भी दान कर दी। कुल मिलाकर एक छोटे से मंदिर निर्माण से प्रारम्भ हुआ सफर अब अच्छे खासे प्रांगण का रूप ले चुका है जिसकी शोभा देखते ही बनती है।
अच्छा.. गांव के कई ऐसे परिवार भी हैं जिनकी पिछली तीन चार पीढ़ियां यहां से पलायन कर गयीं। जब वे गांव में पूजा के लिए आते हैं तो उनके रहने का ठिकाना,भोजन की व्वस्था, सोने के लिए बिस्तर आदि का इंतजाम करने के लिए युवक मंगल दल व महिला मंगल दल की सहायता ली गयी।
कुछ एक धनिक प्रवासियों ने कहा मंदिर के पास एक कमरा हमारी तरफ से बनवा दो।किसी ने अपने जर जर हो चुके मकान को दुरस्त करने के लिए ठेका दे दिया। कुछ ने प्रोत्साहित होकर अपने लिए गांव में ग्रीष्मकालीन आवास ही बनवा लिया।
नतीजा यह हुआ कि गंगा दशहरे के आसपास आयोजित होने वाली इस सामूहिक पूजा में हमारे गांव में खूब चहल पहल होने लगी है। आज दिल्ली वाले काका सपरिवार आ पहुंचे हैं खुशी का माहौल बना हुआ है,कल बंगलौर से बोडा बोडी नाती पोतों के साथ पूरा लाव लश्कर लेकर आ गए थे उनके चौक मे बच्चे धमाचौकड़ी कर रहे हैं।
फोन आया है कि शाम तक देहरादून वालों का जत्था पंहुचने वाला है,लखनऊ वाले आखरी तीन दिन की पूजा में शामिल होंगे,चण्डीगढ़ वाले तो सतपुली से आगे आ चुके हैं। अमृतसर वाले भैजी, जयपुर का बिज्जू, हिमाचल से दिन्ना, रोहतक का मन्ना, भोपाल से टिन्नू भी आ रहे हैं।
मंदिर के पास टैंट लगा है। जोशीमठ में रहने वाले पड़ोस के गांव के कथावाचक व्यास जी को पूरी टीम के साथ आमंत्रित किया गया है। व्यास जी के रहने की व्यवस्था बलदेव दादा ने अपने घर में की है। पाठार्थियों का समूह भरोसा दादा जी के यहां टिका है।
सुबह से ही माइक पर श्लोकों व भजनों की आवाज गूंजने लगती है।आज पल्ले खोले वालों की तरफ से संकल्प होना है। कल की पिठाई के लिए मल्ले खोले वालों ने कहा है, परसों तल्ले खोले वालों ने तय कर रखा है। अगले दिन के प्रसाद भोजन का जिम्मा मुंबई से आए परिवार ने लिया है।
शाम को होने वाले भजन तथा आरती कार्यक्रम में तो पास पड़ोस के गांव वालों की भीड़ भी जुटने लगी है।
लिहाजा जून महीने में एक उत्सव का माहौल बन जाता है हमारे गांव में।
क्रमश: