कभी सीमेंट के पाइप में जिंदगी गुजारते थे अजीत, गली के ‘गुंडे’ से ऐसे बने बॉलीवुड के ‘लॉयन’ |
कभी सीमेंट के पाइप में जिंदगी गुजारते थे अजीत, गली के ‘गुंडे’ से ऐसे बने बॉलीवुड के ‘लॉयन’ |
बॉलीवुड में कुछ एक्टर्स ऐसे हैं जिन्हें उनके हीरो नहीं बल्कि विलेन के किरदार के लिए याद किया जाता है। कुछ ऐसे ही हैं अपनी अनोखी संवाद अदायगी के लिए जाने जाने वाले बॉलीवुड के सुपरहिट विलेन अजीत। बॉलीवुड की फिल्मों में ‘लॉयन’ नाम से प्रसिद्ध एक्टर अपने जमाने में विलेन के किरदार में आकर स्क्रीन पर आग लगा दिया करते थे। अजीत खान का असल नाम हामिद अली खान है। इंडस्ट्री में एक्टर अजीत के नाम से काफी फेमस थे। आज उनका जन्मदिन है, तो चलिए इस खास मौके पर उनसे जुड़ी कुछ बातें आपको बताते हैं।
अजीत बचपन से ही हीरो बनना चाहते थे, लेकिन पहले के समय में हीरो हिरोइन को अच्छा नहीं माना जाता था, इसलिए सभी माता-पिता की तरह अजीत के माता-पिता भी चाहते थे कि उनका बेटा कुछ अच्छा काम करे। लेकिन अजीत को हीरो बनने का शौक था तो वह घर से भागकर मुंबई चले आए। घर तो छोड़ दिया था, लेकिन ना उनके पास कोई काम था ना ज्यादा पैसा। जिसके बाद पेट के लिए उन्होंने छोटे मोटे काम करने शुरू कर दिए। साल 1940 में अजीत ने अपने सपने को साकार करने का रास्ता तो मिल गया, वह हीरो बन गए। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की लेकिन सब की सब फ्लॉप हो गईं, जिसके बाद उन्होंने विलेन बनने के बारे में सोचा।
विलेन का किरदार अजीत ने केवल फिल्मों में ही बल्कि असल जिंदगी में भी जिया है। जब वह मुंबई आए थे तो उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। काफी वक्त तक वह सीमेंट के पाइप में रहकर जिंदगी गुजारते थे। उन दिनों लोकल एरिया के गुंडे उन पाइप में रहने वाले लोगों से भी पैसा वसूलते थे। जो पैसा देता था वो रहता था जो नहीं देता उसे पीटकर भगा देते। एक दिन गुंडे अजीत के पास पैसे लेने आए। उन्हें धमकाने लगे की पैसे दो नहीं तो मार देगें। अजीत को गुस्सा आ गया। और उन्होंने गुंडों को पीट दिया। ऐसा करने के बाद वह खुद गुंडा बन गए। इसके बाद आस-पास के लोग भी उनसे डरने लगे।
डर की वजह से उन्हें खाना-पीना मुफ्त में मिलने लगा और रहने का भी इंतजाम हो गया।
अजीत ने अपने करियर में 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। जिनमें से ज्यादातर किरदार विलेन के ही थे। अजीत को असली पहचान साल 1976 में रिलीज हुई फिल्म कालीचरण से मिली। इस फिल्म में उनका डायलॉग ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है और, इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है।’ ने हिंदी सिनेमा का ‘लॉयन’ बना दिया।
उत्तराँचल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |