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Tag: चलो चले गांव की ओर

चेहरे पर दिख रहे आपदा के आतंक के निशान, ये रिपोर्ट बता रही गेटवे ऑफ हिमालय की हालत |

चेहरे पर दिख रहे आपदा के आतंक के निशान, ये रिपोर्ट बता रही गेटवे ऑफ हिमालय की हालत |

उत्तराखण्ड
चेहरे पर दिख रहे आपदा के आतंक के निशान, ये रिपोर्ट बता रही गेटवे ऑफ हिमालय की हालत | गेटवे ऑफ हिमालय के नाम से मशहूर जोशीमठ में भू.धंसाव से जमीन में कई मीटर गहरी दरारें पड़ गईं और 700 से ज्यादा घरों की दिवारें दरक गई हैं। इस आपदा के आतंक के निशान यहां हर स्थानीय चेहरे पर दिख रहे हैं। कालोनियां और होटल खाली कराए जा रहे हैं। जिला प्रशासन ने पिछले तीन दिनों में कोई 70 परिवारों को गेस्टहाउस में शिफ्ट किया। बृहस्तपतिवार को दस और परिवारों को सुरक्षित स्थलों पर ले जाया गया। सरकार की उपेक्षा से गुस्साए लोगों ने सुबह से कई घंटे चक्का जाम रखा है। सुरक्षा के लिहाज से पर्यटकों के लिए जोशीमठ.औली रोपवे भी बंद कर दिया गया है। प्रधानमंत्र कार्यालय खुद इस मामले में पल पल की जानकरी ले रहा है। राज्य सरकार के विशेषज्ञों की टीम गठित की है जो देर शाम तक जोशीमठ पहुंच जाएगी। ये टीम भू.धंसाव रोकने के लिए दीर...
पहाड़ में दर्दनाक सड़क दुघर्टना में डिग्री कॉलेज के छात्र की मौत, परिवार का था इकलौता बेटा |

पहाड़ में दर्दनाक सड़क दुघर्टना में डिग्री कॉलेज के छात्र की मौत, परिवार का था इकलौता बेटा |

उत्तराखण्ड
पहाड़ में दर्दनाक सड़क दुघर्टना में डिग्री कॉलेज के छात्र की मौत, परिवार का था इकलौता बेटा | राज्य में लगातार बढ़ती जा रही दर्दनाक सड़क दुघर्टनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अब तक ना जाने कितने ही लोगों को काल का ग्रास बना चुकी दर्दनाक सड़क दुघर्टनाओं की एक दुखद खबर आज राज्य के पिथौरागढ़ जिले से सामने आ रही है जहां एक बाइक के अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ के छात्र की मौके पर ही मौत हो गई। बताया गया है कि मृतक बीए प्रथम वर्ष का छात्र था। इस दुखद हादसे की खबर से मृतक के परिवार में कोहराम मचा हुआ है और परिजनों की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी विकासखंड के सैणराथी गांव निवासी यशवंत सिंह मेहता, लक्ष्मण सिंह महर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ में बी...

चलो चले गांव की ओर…. दसवीं (समापन) किश्त… बोडी पर देवता अवतरित हो गया, उन्ने जोर से किलक्कताल मारी… आदेश…!

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर...गतांक से आगे.. दसवीं (समापन) किश्त आज कथा का‌ समापन दिवस है। मंदिर परिसर में सुबह से ही हलचल हो रही है। पाठार्थी उच्च स्वर में जप कर रहे हैं। व्यास जी‌ गद्दी पर बैठे मौन वाचन करते हुए पुस्तक के पृष्ठ पलटते जा रहे हैं। आस-पास के गावों से श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा आ रहा है। पाण्डाल भक्तों से खचाखच भर चुका‌ है। अंतत: जैसे ही व्यास जी ने पारायण की घोषणा करते हुए उद्घोष किया बोलिए आज के आनंद की... सामूहिक स्वर वातावरण में गूंज उठे.. जय। एक पाठार्थी ने माइक अपने सामने खिसकाते हुए उच्चारित किया.. धर्म की.. सभी एक साथ बोल उठे ... जय हो..., अधर्म का.. नाश हो.., प्राणियों में.. सद्भावना हो। हर-हर महादेव... हर-हर महादेव... फिर व्यास जी के द्वारा आरती करने का संकेत करते ही आरती प्रारम्भ‌ हो गयी। प्रांगण में बैठे समस्त लोग अपने स्थान ...

चलो चले गांव की ओर… नौवीं किश्त.. मैंने कह दिया, बोगट्या वोगट्या तो नहीं पर रोट कटेगा

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर.... गतांक से आगे... नौवीं किश्त.. समापन से पूर्व की किश्त भैजी कल तेरे घर की महफिल में भी बौत मज्जा आया पर, सच बताना हमारे आने के बाद भाभी जी ने क्लास तो नहीं ली नरू काका ने डायरेक्टर बोडा को छेड़ा। अमा यार किसकी घरवाली बोलेगि कि दारू पिओ.. गुलछर्रे उड़ाओ.. पर मैंने पैलेई बोल दिया था कि भै बंध बैठेंगे शाम को हल्ला मत करना।तकरार की आवाज तो आ रही थी मैंने सुना, हम पे नाराज तो नहीं हो रही थीं नरू काका भी सच उगलवाने को आतुर हो रहा था। ना ना तुम्हारे लिए कुछ नहीं कह रही थी बोडा ने टालने की गरज से कहा। कुछ तो बोल ही रही थी भैजी, नरू काका भी नशे की पिनक में अड़ गया। यार वो अक्सर मेरे द्वारा दोस्तों को दी जाने वाली दावत को फालतू की दरियादिली का आरोप लगाकर ताने सुनाती रहती है कि सारी दुनिया के लिए सबकुछ लुटाते रहते हो पर मेरे लिए आज तक...

चलो चले गांव की ओर… आठवीं किश्त… गुरु जी थोड़ा और कुटाई-पिटाई करते तो मैं ज्वाइंट डायरेक्टर नहीं डायरेक्टर बनता

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर..... गतांक से आगे... आठवीं किश्त भुळा वो भी क्या दिन थे गांव में, गरीबी तो थी पर रिश्तों की अमीरी भी थी। हम सभी मिलजुलकर रहते थे। खेलना, कूदना, लफंडरी, लड़ाई झगड़ सब होता था पर प्यार मुहब्बत में भी कोई कमी न थी। तू तो मुझसे दो क्लास पीछे था बोडा ने मन्ना से मुखातिब होकर कहा। अब्बे छठी सातवीं तक हम साथ पढ़े हैं तू भूल गया रे, मैं एक बार सातवीं में लुढ़क गया तू आगे बढ़ गया, फिर दूसरी बार मैं दसवीं मे भी फेल हुआ तब तू दो क्लास आगे हो गया मन्ना ने बचपन के पन्ने पलटते हुए कहा। क्या दिन थे यार गुरु जी के लिए लौकी ले जाना, हरी सब्जी ले जाना, कभी-कभी मां घी का डिब्बा भी देती भूरा ने तीसरे पैग को दम्म से हलक में उतारते हुए यादों का सीन खींचा। वो दाणि गुरु जी तो अब क्या ही बचे होंगे, जब हम ही इतना बूढ़े हो गये हैं, बोडा ने सेब की फां...

चलो चले गांव की ओर… सातवीं किश्त… जंगल में आग लगाकर फारेस्टर, रेंजर से लेकर डीएफओ तक कूटते हैं चांदी

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर... गतांक से आगे.. सातवीं किश्त शाम की आरती के बाद रोहतक से आए मन्ना काका ने खास खास लोगों को अपने यहां जिमा लिया। आज भी लगभग कल जैसा ही डायरेक्टर बोडा के कमरे सा सीन था। बस अंतर इतना था कि मन्ना काका के पुराने मकान में इतनी कुर्सियां नहीं थी कि सभी के ऊपर बैठने की व्यवस्था हो पाती सो बरामदे में चटाई दरी बिछाकर इंतजाम किया गया था। यूं भी मन्ना काका का पुश्तैनी मकान सालभर तो बंद ही रहता है बस, गर्मियों की छुट्टी में जब परिवार पूजा में शामिल होने आता है तो ही दरवाजे के कुण्डी खुलते हैं। इसलिए घर में केवल बहुत ही जरूरत की चीजें जमा कर रखी हैं बस काम चलाने भर के लिए। खैर दावत के लिए बीच में अखबार को दस्तरखान जैसा बिछाया गया। उसके ऊपर कांच के गिलास, पानी का जग,थाली में प्याज खीरे का सलाद, प्लेट में हरी चटनी वाला नमक व सेब संतरे क...

चलो चले गांव की ओर… छठी किश्त… पलायन का दंश झेल रहे गावों में मरहम का काम कर रहे धार्मिक आयोजन

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर..... गतांक से आगे... छठी किश्त आज कथा सुनने के लिए मंदिर प्रांगण में बहुत भीड़ जुटी थी। हांलाकि, हमारे गांव के कुछ परिवार जिनके पास ज्यादा छुट्टियां नहीं बची थीं, वापस जा चुके थे। लेकिन, उनकी जगह कुछ नये लोग भी आ पहुंचे थे। फिर इस समय तक आस-पास के सभी गांवों में व्यास जी की प्रसिद्धि भी फैल चुकी थी कि बहुत बढ़िया कथावाचक आए हुए हैं। इस समय वे शिव शंकर जी के भगवान कृष्ण‌ के बाल स्वरूप के दर्शन करने के दृश्य का वर्णन कर रहे थे। माता यशोदा जी से शिव जी अनुनय कर रहे हैं कि मुझे अपने लल्ला के दर्शन कर लेने दे मैय्या। यशोदा जी कह रही हैं तोय देख के मोरो लल्ला डर जावेगो। इस बीच पीछे से हलचल हुयी, देखा तो गांव की कुछ लड़कियां सजी धजी पालने में एक छोटे शिशु को लेकर आ रही हैं। अरे ये तो पल्ले खोले के कुंजी का बच्चा है। सिर पर छोटा सा...

चलो चले गांव की ओर… पांचवी किश्त… अमा यार वो नत्था नहीं.. नेपालियों की कच्ची बोल रही थी…

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड ------------------------------------- चलो चले गांव की ओर... गतांक से आगे... पांचवी किश्त चली गयी चौकड़ी दारू पीकर पत्नी ने कमरे की सफाई करते हुए बोडा को ताना मारा। अमा यार तू भी..., साल भर में एक बार गांव आना होता है भाई बंधो के पास, दो घड़ी बैठ लिए तो कौन सा जुल्म कर दिया। बात बैठने की नहीं है ताई तमतमाते स्वर में बोली। तो फिर क्या बात है, आगबूला क्यों हो रही हो? क्या-क्या बोले जा रहे थे नशे की झोंक में, मैं बगल में सब सुन रही थी ताई का आवेश कम होने वाला नहीं लग रहा था। क्या बोला मैंने, नशे की लहर में बोडा का पौरुष भी बैकफुट में आने को तैयार न था। मैं दिलाता हूं नत्था को हरियाणा से चार जर्सी गाय, उससे कहो गाय पाले, गांव में डेरी खोले .. मैं हार्टीकल्चर व फौरेस्ट डिपार्टमेंट में भी बात करूंगा, वहां से पौध दिलवाऊंगा, उससे कहो फलदार वृक्ष लगाए,...

चलो चले गांव की ओर… चौथी किश्त… अबे बस्स कर भैजी पाणी नहीं मिलाऊंगा क्या?

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड चलो चले गांव की ओर...गतांक से आगे... चौथी किश्त ----------------------------------------------------------------- शाम को आरती के बाद जब चरनामृत व प्रसाद बांटा जा रहा था तो दिल्ली से आए डायरेक्टर बोडा ने चुटकी लेते हुए नत्था के बाबा नरू काका से कहा भुळा दूसरा प्रसाद लेना है तो बोल, बढ़िया ब्राण्ड की अटैची में दिल्ली से डाल लाया हूं। भैजी नेकी और पूछ पूछ हम तो बचपन से ही हर प्रकार का प्रसाद ले लेते रहे हैं आपको पता ही है, यह कहते हुए नरू काका की आंखों में चमक उभर आयी। तो थोड़ी देर में कमरे में सुट करके आ जाना और सुन वो पल्ले खोले के घुत्ता को बोल देना और उस ऐबी दिन्ना को भी, बौत दिनों बाद भै बंदो के साथ अपणी खौ-खैरी लगाएंगे, छुंई बत्ते होंगी। फिर शाम ढलते ही डायरेक्टर बोडा के पुश्तैनी मकान के लचर कमरे में महफिल जम गयी। दो पैग हलक में उतरते ही ...

चलो चले गांव की ओर….. तीसरी किश्त… टुर्रा चिल्लाया, बौत बने हैं आज गांव वाले

राष्ट्रीय
नीरज नैथानी रुड़की, उत्तराखंड --------------------------------------- चलो चले गांव की ओर.......गतांक से आगे..... तीसरी किश्त कल शाम को खाना खाने के बाद सारे गांव वाले मंदिर प्रांगण में बैठे गपशप मार रहे थे। पास में पीपल के पेड़ की शाखाएं हवा में लहरा रही थीं। खुशनुमा हवा के झोकों से तन-मन प्रफुल्लित हो रहा था। बच्चे आंगन में खेल-कूद कर रहे थे। गांव तो भई गांव है, देहरादूनी काका ने मस्ती भरी अंगड़ाई लेते हुए कहा। प्रदूषण भरे शहरों में ऐसी शुद्ध हवा कहां मिलती है, गर्मी में दम घुटता है दिल्ली वालों ने व्यथा प्रकट की। तभी निचले चौक में हल्ला सुनाई दिया।कोई जोर-जोर से चिल्लाकर हुड़दंग कर रहा था। कौन है? अरे ये टुर्रा है बोडी का, कच्ची पीकर आया होगा नेपालियों के यहां, इसका रोज का यही धंधा है। बिथ्याणी बोडी का पैंतीस वर्षीय लड़का टुर्रा बेरोजगार था। पिता बचपन में ही गुजर गए ...