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युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल धर्मी की एक ग़ज़ल… बस हमने हाथ न पसारा, खुद्दारियों के चलते…

युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल धर्मी की एक ग़ज़ल… बस हमने हाथ न पसारा, खुद्दारियों के चलते…

राष्ट्रीय
धर्मेन्द्र उनियाल 'धर्मी' चीफ फार्मासिस्ट, अल्मोड़ा ------------------------------------------------- - बस हमने हाथ न पसारा, खुद्दारियों के चलते, कर लिया सबसे किनारा ,खुद्दारियों के चलते! अदब के सिवा सिर झुकाना मंजूर नही हमे, हमे मंजूर है हर ख़सारा, खुद्दारियों के चलते! पहले सिर झुका लेते, शायद बच गये होते, हम लुटे हैं फिर दोबारा, खुद्दारियों के चलते! फ़क़त वो चाँद ही आसमां का चहेता बन रहा, टूटा फ़लक से सितारा, खुद्दारियों के चलते! खुशामदी को उम्रभर हमने दरकिनार ही रखा, किसी रहनुमा को न पुकारा, खुद्दारियों के चलते! मैं ज़िन्दगी की भीख़ मांग लूं, ये हो नही सकता, है ज़हर ही आख़िरी चारा, खुद्दारियों के चलते!!  ...