चलो चले गांव की ओर… दूसरी किश्त.. अपनी जड़, जमीन से बढ़ गया लगाव
नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड
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चलो चले गांव की ओर...दूसरी किश्त... गतांक से आगे
कई सालों से देश के विभिन्न राज्यों के अनेक शहरों में काम कर रहे हमारे गांव के लोग जब से पूजा में शामिल होने के लिए गांव आने लगे हैं उनका अपनी जड़ जमीन से लगाव बढ़ गया है। एक-दूसरे के बारे में पूछताछ हो रही है। गांव आने पर वे जिज्ञासा प्रकट करते हैं, फलाने का बड़ा वाला क्या कर रहा है? उसने बेटी ब्याह दी? उसका नौकरी पर लगा?
कुनबे के चाचा जी अपने भाई से गुहार लगा रहे हैं, आपकी शहर में इतनी जान पहचान है, इस छोटे को कहीं चिपकाओ, कोई कह रहा है कि दोनों बिटिया सयानी हो गयीं हैं ढंग का रिश्ता बताओ? किसी की खुशामद है कि ये बिगड़ गया है सारे गांव में लफण्डरों की तरह भटकता रहता है, इसे अपने साथ ले जाओ। कोई आश्वस्त कर रहा है, अच्छा तू तैयार हो जा हमारे साथ चलेगा इस समय। कोई ...