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बोया बीज बबूल का… फल काहे को होय! *पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में भीषण आग लगने के पीछे ढेरों हैं लापरवाहियां?

बोया बीज बबूल का… फल काहे को होय!

*पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में भीषण आग लगने के पीछे ढेरों हैं लापरवाहियां?

“22 वर्षों में उत्तराखंड को स्वच्छ वातावरण एवं हरियाली देने के वायदे कितने साकार किए गए, यह आज एक ज्वलंत गंभीर विषय है”

देहरादून – उत्तराखंड राज्य को ऑक्सीजन का भंडार बताने वाले तथा पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के दावे करने वाले आज उत्तराखंड राज्य को कितना हरा भरा बनाने में कामयाब हुए हैं उसका परिणाम आज पृथक राज्य बनने के करीब 22 वर्षों के पश्चात देखने को मिल रहा है जो कि काफी दुखद एवं गंभीर चिंतन का विषय है कई पर्यावरण विधि पर्यावरणविद एवं चिंतकों ने उत्तराखंड राज्य को हरा भरा बनाने की दिशा में बहुत कुछ बलिदान दिए और आंदोलन भी करने में कोई कमी नहीं छोड़ी साथ ही राज्य की सरकारों को अल्टीमेटम भी देकर उत्तराखंड राज्य की अमूल्य वन संपदा को बचाने एवं बनाने की दिशा में उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण योगदान निश्चित रूप से दिए हैं इन महानुभावों ने समय-समय पर राज्य सरकारों तथा जनता जनार्दन को पर्यावरण के प्रति सजग एवं जागरूक रहने के लिए भी अपनी भूमिका निभाई है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है, परंतु आज इसी पर्वतीय राज्य में जिस तरह से बबूल के पेड़ बोने का काम किया गया, तो ऐसे में हम फल पाने की इच्छा एवं सपना क्यों संजोए हुए हैं |
राज्य के अनेक जंगलों में आग का भीषण तांडव हम सभी देख रहे हैं और यह आग इतनी विकराल रूप धारण करती जा रही है कि उसको रोकना नाकों तले चने चबाने के समान ही है| अब तक वन अग्नि की घटनाओं में 2400 हेक्टेयर वन क्षेत्र जलने का मामला सामने आ चुका है | इस वर्ष 15 फरवरी से शुरू हुए फायर सीजन में अब तक वन अग्नि की कुल 1443 घटनाएं सामने आ चुकी है | इन घटनाओं में गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही जिलों के वन्य क्षेत्र शामिल हैं | दुख की बात यह है कि उत्तराखंड राज्य का निर्माण होने के बाद से लेकर अब तक पहाड़ी वन्य क्षेत्रों का दोहन किया गया और वृक्षों के अवैध कटान अंधाधुंध तरीकों से भी हुए हैं I फलदार एवं छायादार वृक्षों को धराशाई किया गया | उत्तराखंड राज्य की विधानसभा में दर्जनों बार पहाड़ों से अवैध कटान होने के मामलों की गूंज भी हुई और कुछ मामलों में जांच भी होने के फरमान जारी हुए, लेकिन कुल मिलाकर आज हालात पहाड़ी वन्य क्षेत्रों के यह है कि यह जंगल धू-धू कर जल रहे हैं और भीषण आग उन्हें निरंतर चपेट में ले रही है |सवाल यह है कि आखिर इन सब के लिए कौन दोषी है ?और किस-किस पर कार्यवाही होनी चाहिए? हालांकि भीषण आग लगने से इन मामलों को लेकर सरकार की गंभीरता मुखर होती दिखाई दे रही है और इस कहर के चलते अब तक 119 मामले दर्ज किए जा चुके हैं यही नहीं जुर्माना वसूलने की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन इस संकट को देखते हुए आज मुख्य कहावत यह चरितार्थ हो रही है कि जब ‘बोया पेड़ बबूल का,तो फल काहे को होए’ |

उत्तरांचल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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