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तस्वीरों में देखें 14 रत्नों में निकले अमृत का पान करने लिए अलकनंदा किनारे उमड़ा हुजूम |

तस्वीरों में देखें 14 रत्नों में निकले अमृत का पान करने लिए अलकनंदा किनारे उमड़ा हुजूम |

तस्वीरों में देखें 14 रत्नों में निकले अमृत का पान करने लिए अलकनंदा किनारे उमड़ा हुजूम |

तस्वीरों में देखें 14 रत्नों में निकले अमृत का पान करने लिए अलकनंदा किनारे उमड़ा हुजूम |

रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक के दशज्यूला पट्टी की आराध्य मां भगवती चंडिका देवी की वन्याथ (दिवारा यात्रा) के तहत समुद्र मंथन लीला की गई। इस अद्भुत क्षण के हजारों देवी भक्त साक्षी बने। समुद्र मंथन में 14 रत्नों में निकले अमृत (चरणामृत) का पान करने के लिए श्रद्धालु यहां बड़ी संख्या में मौजूद रहे। इस अमृत को प्रसाद रूप में भक्तों में वितरित किया गया।

कोठगी गांव के निकट अलकनंदा नदी में चंडिका की दिवारा में समुद्रमंथन किया गया। इस भव्य दृश्य को देखने के लिए सुबह से ही भक्तों की भीड़ नदी किनारे जुटने लगी थी। दोपहर बाद लगभग साढ़े 12 बजे देवी के पुजारियों ने ब्रह्मपुंज स्वरूप मां भगवती चंडिका की विशेष पूजा-अर्चना करते हुए आह्वान किया। साथ ही पंचनाम देवी-देवताओं का स्मरण कर पूजा की गई।

इस मौके पर मां चंडिका सहित देवी के कई रूप अपने पश्वाओं पर अवतरित हुए और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इसके बाद परंपरानुसार समुद्रमंथन के निर्वहन के लिए पुजारी हरिबल्लभ सती, ललिता प्रसाद पुरोहित, विजय भूषण खाली ने धार्मिक परंपराएं शुरू की। यहां पर विशेष ताम्र पात्र में दूध, दही, शहद, व पंचामृत तैयार किया गया।
इसके बाद दोनों तरफ से विशेष घास से बनाए गए रस्सों से दो देवता और असुर रूप में समुद्रमंथन परंपरा का निर्वहन किया गया। इस दौरान प्रतीकात्मक निकले 14 रत्नों में कामधेनु, एरावत हाथी, उच्चश्रवा अश्व, कौस्तुक मणि, पारिजात वृक्ष, अप्सरा रंभा, लक्ष्मी, वरूण, अमृत कलश, विष, शंख, वीणा और धनुष को दोनों पक्षों में वितरित किया गया।
समुद्र मंथन में निकले अमृत (चरणामृत) को यहां मौजूद श्रद्धालुओं में प्रसाद रूप में वितरित किया गया। इस मौके पर दिवारा यात्रा के अध्यक्ष धीर सिंह बिष्ट, सचिव देवेंद्र जग्गी, कोषाध्यक्ष जगदीश भंडारी, राय सिंह रावत सहित कोठगी, क्वीली, मदोला, सारी, छिनका, भटवाड़ी सहित दशज्यूला के 24 गांवों के ग्रामीण मौजूद थे।

मां चंडिका की वन्याथ (दिवारा यात्रा) में समुद्र मंथन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि देवी की उत्तर दिशा की दिवारा यात्रा पूरी होने के बाद पश्चिम दिशा की यात्रा होती है, जिसमें समुद्र मंथन की परंपरा है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि जब चंडिका छह माह तक गांवों का भ्रमण करती है, तो उसके साथ एरवाल, पश्वा, ध्याणियां व ग्रामीण भी रहते हैं। ऐसे में अपने मूल मंदिर में प्रवेश से पहले मां चंडिका समुद्र मंथन से निकले अमृत को अपने भक्तों को देकर उन्हें आरोग्य व सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती है।
समुद्र मंथन लीला के बाद मां चंडिका की दिवारा रात्रि प्रवास के लिए छिनका गांव पहुंची। जहां पर ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊं के साथ आराध्य का स्वागत किया। साथ ही रात्रि जागरण कर कीर्तन-भजन का आयोजन किया। दशज्यूला क्षेत्र की आराध्य मां चंडिका की दिवारा यात्रा 92 वर्ष के बाद बीते साल विजयदशमी के पर्व पर शुरू हुई थी।
देवी का मूल मंदिर दशज्यूला के महड़ गांव में स्थित है। अपने गूठ 24 गांवों के भ्रमण के बाद से देवी अभी तक रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी और पौड़ी जिले के 184 गांवों का भ्रमण कर अपनी ध्याणियों व भक्तों की कुशलक्षेम पूछ आशीर्वाद दे चुकी है।

उत्तरांचल क्राइम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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