Wednesday, February 5News That Matters

Tag: काव्य

युवा कवि धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली कविता… यू कोराना कू काल छ

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धर्मेंद्र उनियाल 'धर्मी' चीफ़ फार्मासिस्ट, अल्मोड़ा ------------------------------------- यू कोराना कू काल छ, फूटियूं सबूकू कपाल छ। कैकी ह्वईं मुखडी सफेद, कैकी पट कैक लाल छ। १ यू कोराना कू काल छ, फूटियूं सबूकू कपाल छ। होटल वाला भूखा मरना, गौं मा मजूरी ध्याड़ी करना। कैमा नी छ आटू न चौंल, कैमा भुज्जी न दाल छ।२ यू कोराना कू काल छ। कुछ मरयन अस्पतालू मा, कुछ सरकारी फेर जालू मा भैर त सब भलू बतौणा पर भीतर बुरू हाल छ।३ यू कोराना कू काल छ। काम धंधा चौपट ह्वैग्यन, लक्ष्मण रेखा चौखट ह्वैग्यन जनू पिछल्यू साल गुजरी, यू भी त वनी साल छ।४ यू कोराना कू काल छ। मंहगाई की रेल निकली, हमारू तुम्हारु तैल निकली। अर्थव्यवस्था डूबी गै पर, मंहगाई त मा उछाल छ।५ यू कोराना कू काल छ। स्कूलू मा लग्यां ताला, काई सेंवालू मोटा जाला फीस त हम तैं देण पड़ी। यू ऑनलाइन क...

कवि जसबीर सिंह हलधर का शानदार गीत… लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है

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जसबीर सिंह हलधर देहरादून, उत्तराखंड ---------------------------------------- गीत-स्वर्ग धरती आ रहा है -------------------------------------------- लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है। देवता भयभीत हैं कि स्वर्ग धरती आ रहा है।। अब हवाएं मौन होंगी नीड़ निगलेगी न आँधी। यातनाएं गौण होंगी खून बेचेगी न खादी। गीत जन गण देवता के खुद हिमालय गा रहा है।। लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है।।1 भूख से होंगी न मौतें शांति होगी मरघटों में। अब हलाला भी न होगा क्रांति होगी घूंघटो में। बिजलियों के साथ बादल भी जमीं पर छा रहा है।। लोक में परलोक नक्शा उतारा जा रहा है।।2 मौत से होगी न शादी जिंदगी आसान होगी। नर्क में होंगे जिहादी कौम की पहचान होगी। न्याय के अंगार को सूरज स्वयं दहका रहा है।। लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है।।3 देश का कानून होगा जालिमों को अब पनौती। य...

 जसबीर सिंह ‘हलधर’ … जिंदगी कड़े तेबर तेरे, फिर भी तू सबको भाती है!

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जसबीर सिंह 'हलधर' देहरादून, उत्तराखंड ------------------------------------------- कविता -जिंदगी --------------------- जिंदगी कड़े तेबर तेरे, फिर भी तू सबको भाती है! जो जैसा है जो भी कुछ है ,तू सबको गले लगाती है!! पिंजड़े में फँसकर देख लिया, विपदा में हँसकर देख लिया! सौ बार नदी को पार किया, दलदल में धँसकर देख लिया! तू मानस का हर मौके पर, भेजा भी खूब चबाती है! जो जैसा है जो भी कुछ है, तू सबको गले लगाती है!!1!! जागें सब तेरे संग संग, भागें सब तेरे संग संग! साँसों का माँझा बना रखा, डोरी हैं सब तू है पतंग! तू कब कट के गिर जाएगी, हर पग पर राज छुपाती है! जो जैसा है जो भी कुछ है, तू सबको गले लगाती है!!2!! तू कभी महकती बाहों में, तू कभी चहकती राहों में! नखरे भी तेरे बहुत बड़े, तू कभी दहकती आहों में! आँसू आँखों में खारे है, मीठी भी नींद सुलाती है! जो जैसा जो भी कुछ है, ...
“पागल फ़क़ीरा”… क्षितिज पर दूर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को..

“पागल फ़क़ीरा”… क्षितिज पर दूर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को..

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"पागल फ़क़ीरा" भावनगर, गुजरात --------------------------------------- क्षितिज पर दूर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को, धुंध हटेगी, धूप खिलेगी, फिर दिन नया है छाने को। साहिल पर बैठे बैठे डरते रहने से क्या होगा दोस्त, लहरों से लड़ना होगा उस पार समन्दर जाने को। प्यार इश्क़ तो है पुरानी बातें, कैसे इनसे नज़्में सजे, आज की क़लम वो दर्द लाई सोती रूह जगाने को। दिन गुज़रा याद दिलाता है, भूली बिसरी बातें अब, सुर नया हो, ताल नया हो, गाये नये अफ़साने को। ख़ुद के हाथों की लक़ीरों को तू करले ख़ुद के बस में, "फ़क़ीरा" तेरी रूठी तक़दीर कौन आये उसे मनाने को।  ...
वरिष्ठ साहित्यकार भारती पाण्डे की एक कविता.. सखी! सावन आया है

वरिष्ठ साहित्यकार भारती पाण्डे की एक कविता.. सखी! सावन आया है

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भारती पाण्डे देहरादून, उत्तराखंड ------------------------ सावन आया है .... तप्त धरा संतृप्त, हृदय असंतृप्त कृष्णमेघ कौतुकी, अवनी अंबर संपृक्त झर झर झर पावस सर्वत्र समाया सखी! सावन आया है। ताल-नद जलाकंठ, नहीं कोई रिक्त नदी-कछारों में, हरियर मुस्काया सखी! सावन आया है। श्यामल दिग–दिवस साँझ, झूमें तरु-पीपर पात स्वप्न जागे मन-मन में प्रेम अकुलाया सखी! सावन आया है। मेघों का गर्जन दामिनी–नर्तन मन मयूर चहका, नूपुरों की रुनझुन श्रावणी-कजरी युगल गीत गाया सखी! सावन आया है। वेगवती चलीं सागर की ओर प्रिय-मिलन आतुरता अहो! उमंग–पुरजोर नेह भरे चंचल चित्त-प्रीत की माया सखी! सावन आया है। सुन री सखी! ऋतु सावन-धनी हेरन-सुधबुद्ध कहाँ रे सखी! कोयल की कूक, अमराई-झूले गाँव की गैल-छैल, स्मृतियों के रेले पुलकित तन-मन, मेहंदिया गंध क्षितिज से क्षितिज तक इंद्रधनु छाया सखी! सा...

पुण्यतिथि पर विशेष…कवि वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” की काव्यांजलि… घनाक्षरी छंद…जन के सुमन तुम्हें शतश नमन

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वीरेन्द्र डंगवाल "पार्थ" देहरादून, उत्तराखंड जन के सुमन तुम्हें शतश नमन जन्मा वीर योद्धा एक, दुख सहे थे अनेक अमर बलिदानी जी, श्रीदेव सुमन है पिता वैध हरिराम, जन्मभूमि जौल ग्राम तेजस्वी मां तारादेवी, शतश वंदन है जनता की पीड़ा सुनी, संघर्षों की राह चुनी मुक्ति अत्याचार से जी, दिलाने का मन है घूम घूम रियासत, लोगों को जाग्रत किया समर्पित कर दिया, जन को यौवन है।। राजशाही अत्याचार, ढोएंगे न लोग अब खत्म होगा टिहरी से, जन का दमन है महकेगा सुख के जी, कुसुमों से राज्य सारा सुखी समृद्ध जनता, सुमन सपन है क्रांति ज्वाला उठी जब, महल में हलचल देखो जननायक को, आ गया समन है कारिदों ने राजा के तो, डाल दिया का कारावास पड़ी हथकड़ी सेर, पैंतीस वजन है।। झुका नहीं वीर योद्धा, कारा की प्रताड़ना से विचारों में आज तक, गजब तपन है अधिकार जन को दो, चाहे मेरी जान ले लो अन्न जल त्याग...
भावनगर गुजरात से पागल फकीरा की एक ग़ज़ल….. कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

भावनगर गुजरात से पागल फकीरा की एक ग़ज़ल….. कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

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"पागल फ़क़ीरा" भावनगर, गुजरात ------------------------------------ कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं, ख़ुद ही अपना आशियाना जला रहा हूँ मैं। अपने दुश्मनों से डरने का वक़्त नहीं अब, रोज इश्क़ के अदुओं को दहला रहा हूँ मैं। ज़माने में मुझे मारने की हिम्मत नहीं अब, ख़ुद को ही मुक़म्मल नींद सुला रहा हूँ मैं। आपकी हसीं महफ़िलों से वास्ता नहीं मेरा, रक़ीबों को ख़ुद जनाज़े में बुला रहा हूँ मैं। ज़माने की परवाह क्या करे अब फ़क़ीरा, ख़ुद के ख़्वाबों में ख़ुद को भुला रहा हूँ मैं। ----------------------------------------------------------- आशियाना- घर अदू- शत्रु, दुश्मन मुक़म्मल नींद- मौत वास्ता- मतलब रक़ीब- प्रेमिका का प्रेमी जनाज़े- अर्थी उठाने...

युवा कवि विनय अन्थवाल की भारतभूमि को समर्पित रचना.. विश्वगुरु था मेरा भारत पावन सुखमय वसुधा में..

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विनय अन्थवाल देहरादून, उत्तराखण्ड ----------------------------------------- विश्व गुरु भारत --------------------------------- विश्वगुरु था मेरा भारत पावन सुखमय वसुधा में ज्ञानालोक से आलोकित था मेरा भारत वसुधा में। ज्ञान यहाँ का आभूषण था ज्ञान गंगा बहती थी। भारत माता ही इस जग में सबसे ऊपर रहती थी । दिव्यगुणों से सम्पन्न मानव, भारत में ही रहते थे सारे जग में केवल इसको, देवभूमि भी कहते थे। सबसे पहले ज्ञान का दीपक, भारत ने जलाया था। अन्धे जग को भारत ने ही, ज्ञानमार्ग बताया था। विश्वगुरु है भारत अब भी मानव हम ही बदल गए भारत भू में रह रहकर भी हम खुद को ही अब भूल गए। विशिष्ट मानव भारतवासी हम जैसा कोई और नहीं आर्षवंशज हैं हम सब ही विश्वगुरु कोई और नहीं। आज भी भारत चमक रहा है सारे जग में निखर रहा है। सद्ज्ञान का दीपक आज भी भारत सारे जग में जला रहा...
युवा कवि आचार्य मयंक सुन्द्रियाल की रचना… रत्न प्रभा सी भाषित होती

युवा कवि आचार्य मयंक सुन्द्रियाल की रचना… रत्न प्रभा सी भाषित होती

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आचार्य मयंक सुन्द्रियाल पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड ----------------------------------------------- रत्न प्रभा सी भाषित होती वह तरणी के तट जो तीर धवल वर्ण की पारदर्शिता हिमखंडों से जस छलकता नीर।।१।। दीर्घ केशों का वह उलझन दरबान बनी हैं मुख पे लटकन मृगनयनों से तो अहर्निश छूटते हैं मन्मथ के वो तीर ।।२।। रत्न प्रभा.......... निशिकर मानो दिवस दिप्त हो प्रभाकर सा स्वर्गिक पुंज लिए दो सूर्य खिले हैं आज व्योम में उस उपत्यका के सम तीर ।।३।। रत्न प्रभा....... क्या एक हुये हैं धरती अंबर या अरूणप्रिया कोई उतरी है ब्रह्म लावण्य भी रिक्त हुआ जो रूप कपोलों में दधिसार।।४।। रत्न प्रभा...….. सहसा झोंका वो हवा का चेतना के स्वर ले आया है मेघा की बूंदों से सिंचित होता तन मन मेरा उस तरणी के तीर ।।५।। रत्न प्रभा......  ...

वरिष्ठ कवि जय कुमार भारद्वाज का एक सुंदर गीत…

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जय कुमार भारद्वाज देहरादून, उत्तराखंड --------------------------------------------- पेड़ --------------- जीवन जग को देता पेड़। जग से है क्या लेता पेड़? शीतल सुखद सुहानी छाया उसने धरती पर बिखरायी थके हुए राही की मंज़िल है जिसने आसान बनायी सबका सच्चा साथी पेड़ । जग से है क्या लेता पेड़? हम फल फूल उसी से पाते जड़ी बूटियाँ उसकी खाते इतना सब कुछ देता फिरभी रहता हर दम हँसते गाते पक्षी का घर होता पेड़। जग से है क्या लेता पेड़? वह धरती का रूप सजाता मुस्कानों के फूल खिलता धूप की चादर ओढ़ी फिर भी शीतल मन्द समीर बहाता जन मन को हर्षाता पेड़ जग से है क्या लेता पेड़? बादल से लाता है पानी धरती को करता है धानी पास नहीं रखता कुछ अपने वीर करण से देखो दानी पर हित जीवन जीता पेड़।। जग से है क्या लेता पेड़?...