Wednesday, January 22News That Matters

युवा कवि धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली कविता… यू कोराना कू काल छ

धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
चीफ़ फार्मासिस्ट, अल्मोड़ा
————————————-

यू कोराना कू काल छ,
फूटियूं सबूकू कपाल छ।
कैकी ह्वईं मुखडी सफेद,
कैकी पट कैक लाल छ। १

यू कोराना कू काल छ,
फूटियूं सबूकू कपाल छ।

होटल वाला भूखा मरना,
गौं मा मजूरी ध्याड़ी करना।
कैमा नी छ आटू न चौंल,
कैमा भुज्जी न दाल छ।२

यू कोराना कू काल छ।

कुछ मरयन अस्पतालू मा,
कुछ सरकारी फेर जालू मा
भैर त सब भलू बतौणा
पर भीतर बुरू हाल छ।३

यू कोराना कू काल छ।

काम धंधा चौपट ह्वैग्यन,
लक्ष्मण रेखा चौखट ह्वैग्यन
जनू पिछल्यू साल गुजरी,
यू भी त वनी साल छ।४

यू कोराना कू काल छ।

मंहगाई की रेल निकली,
हमारू तुम्हारु तैल निकली।
अर्थव्यवस्था डूबी गै पर,
मंहगाई त मा उछाल छ।५

यू कोराना कू काल छ।

स्कूलू मा लग्यां ताला,
काई सेंवालू मोटा जाला
फीस त हम तैं देण पड़ी।
यू ऑनलाइन कू कमाल छ।६

यू कोराना कू काल छ।

सरकार न राशन बांटी,
कैकी तनख़्वाह डी ए काटी,
दूई बरस त ढ़ली गैन।
पर अग्नैय त अब उकाल छ।७

यू कोराना कू काल छ।

रोजगार अर नौकरी गई,
वरडाली की टोकरी गई।
जैकी टूटी गी व्यौ सगाई,
वैका मन मा यू मलाल छ।८

यू कोराना कू काल छ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *