Tuesday, July 1News That Matters

Tag: कमबख्त कम्बल

हरीश कंडवाल मनखी की कलम से… कमबख्त कम्बल ने रात भर सोने नही दिया..

हरीश कंडवाल मनखी की कलम से… कमबख्त कम्बल ने रात भर सोने नही दिया..

राष्ट्रीय
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से कमबख्त कम्बल कमबख्त कम्बल ने रात भर सोने नही दिया, मैंने पूछा कि भाई परेशान क्यो हो, मुझे भी सोने दो। कम्बल ने कहा कि बस गर्मी क्या आ गयी तुम मुझे भूल ही गए हो। मैंने कहा नही दोस्त तुमको कैसे भूल सकता हूँ, तुम जानते हो कि आजकल गर्मी है और बरसात भी, इसलिये तुमको सुरक्षित रखा है, बरसात में तुम पर सिलकाण आ सकती है, तुमको बरसात में धूप भी नही दिखा सकता हूँ, इसलिये तुम अभी बक्से में आराम करो। सर्दियों में तुम ही तो हमसफ़र से भी ज्यादा खास हो जाते हो। अभी सोने दो, कल बात करते हैं। कम्बल उदास हो गया, मुझसे उसकी उदासी नही देखी गयी तब मैंने उसे निकालकर तकिया हटाकर सिर के नीचे सिरवाने में रख दिया। कम्बल सिसक रहा था, मैंने कहा भाई अब सिसक क्यो रहे हो। कम्बल ने कहा भाई देखो कोई मेरी दिल की सुनता नहीं है, मेरी पीड़ा के बारे में कभी किसी ने जाना ही नहीं। मैंने ग...