उत्तराखंड : डायरेक्ट इंजेक्ट से पुनर्जीवित होंगे बंद पड़े हैंडपंप पहाड़ पर जल संरक्षण के लिए अनोखी पहल
बढ़ते जल संकट से निपटने को अब सूख चुके पुराने हैंडपंप कारगर साबित होंगे। खराब और बंद पड़े हैंडपंपों को डायरेक्ट इंजेक्ट से पुनर्जीवित करने में वैज्ञानियों ने सफलता अर्जित की है। भारत सरकार पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत पौड़ी जनपद में किया गया प्रयोग सफल रहा।
इस दौरान वैज्ञानिकों ने करीब दो दशक से पुराने व बंद पड़े 13 हैंडपंपों को पुनर्जीवित कर लिया। जल संकट से निपटने के लिए अनुसंधान जारी है। अप्रत्याशित परिणामों के बीच जल विज्ञानी अब धारों, नौलों के साथ बंद और सूख गए हैंड पंपों को पुनर्जीवित करने की दिशा में अनुसंधान करने लगे हैं।
एमिटी इस्टियूट आफ ग्लोबल वार्मिंग एंड इकोलॉजिकल स्टडीज नोएडा और गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल ने संयुक्त तौर पर अनुसंधान परियोजना में वर्ष 2020 से कार्य शुरू किया। तीन सालों में जल विज्ञानियों ने कई स्तरों पर काम किया। विज्ञानियों ने पर्वतीय क्षेत्रों में साल भर भू-जल जनित स्थितियों व जल विज्ञान को जानने के लिए सभी जल स्रोतों को सूचीबद्ध करना, उनका जल वितरण, जल भरण क्षमता आदि में गहन अध्ययन किया।
इस दौरान 120 से अधिक जल स्रोतों की रासायनिक और जैविक जांच की गई। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में मृदा नमूनों की जांच के साथ ग्रामीण स्तर पर वाटर यूजर ग्रुप का भी गठन किया गया। जिसके बाद पौड़ी गढ़वाल में छह जलागम क्षेत्रों के जल भू-विज्ञानियों ने मानचित्र तैयार करने के साथ 33 संकटग्रस्त जल स्रोतों की परिधि में सूचक पौध प्रजातियों को चिह्नित किया गया।
खराब और बंद पड़े हैंडपंपों को सीधे वर्षाजल से भरकर पुनर्जीवित किया गया। इसके लिए आवासीय परिसरों से गिरने वाले वर्षाजल को संग्रहित कर बंद व सूखे हैंडपंपों की परिधि में इस जल को भरा गया। घरों से वर्षा के पानी को एक खास विविध से परत बनाकर भूमिगत भी किया गया। जिसमें लगभग 50 सेमी परत में बालू, कोयला, कंकड़ रेत आदि बिछाई गई। इस परत में पांच इंच मोटे 20 से अधिक पाइपों के माध्यम से वर्षा जल को भीतर प्रवेश कराया गया।
एमिटी इंस्ट्टीयूट के निदेशक प्रो. मधुसूदन एम, का कहना है कि जलभृत को पुनर्जीवित करने का यह सस्ता उपाय है। परंपरागत विधि से किसी जलागम को उपचारित करने में प्रति हेक्टेयर दो लाख रुपये व प्रति साइट में पांच लाख रुपये तक की लागत का अनुमान है। सीधे हैंडपंपों इंजेक्ट करने में प्रतिवर्ष हम 500 वर्ग मीटर की छत से ही पांच लाख लीटर के करीब पानी को संग्रहित कर सकते हैं और इसकी लागत एक लाख रुपये के करीब आती है।
उत्तरांचल क्राइम न्यूज़ के लिए देहरादून से ब्यूरो रिपोर्ट |