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भारत की पहली क्लोन गाय ने बछड़ी को दिया जन्म, NDRI वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी !

करनाल. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने 2021 में उत्तराखंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल (हरियाणा) की ओर से गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का काम शुरू किया गया है.  इसी परियोजना के तहत 16 मार्च को गिर नस्ल की एक क्लोन बछड़ी पैदा हुई है. जन्म के समय इसका वजन 32 किलोग्राम था औऱ यह बछड़ी स्वस्थ है. गिर गाय भारत के देशी गाय की एक प्रसिद्ध नस्ल है. जो मूलत: गुजरात में पाई जाती है.

देशी गायों के सरंक्षण और संख्या वृद्धि के लिए पशु क्लोनिंग तकनिकी विकसित करना एक अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा. इस नस्ल का उपयोग अन्य नस्लों के गुणवत्ता सुधार के रूप से किया जा रहा है. गिर गाय, अन्य गाय की नस्लों के अपेक्षा, बहुत अधिक सहनशील होती है. जो अत्यधिक तापमान व ठण्ड आसानी से सहन कर लेती है और विभिन्न ऊष्ण कटिबन्ध रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. इसी कारण, हमारे यहां की देशी गायों का ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको, और वेनेजुएला में बहुत मांग हैं.

2 साल से वैज्ञानिकों की टीम कर रही थी काम

वैज्ञानिको की टीम में डॉ. नरेश सेलोकर, मनोज कुमार सिंह, अजय असवाल, एस.एस. लठवाल, सुभाष कुमार, रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल और एमएस चौहान शामिल हैं. ये सभी क्लोन गायों के उत्पादन के लिए एक स्वदेसी विधि विकसित करने के लिए 2 साल से अधिक समय से काम कर रहे थे.

वैज्ञानिकों की टीम के प्रमुख डॉ. नरेश सेलोकर ने बताया कि करीब 15 साल से भैंस के क्लोनिंग पर काम कर रहे थे. अनुभव के बाद निर्णय लिया कि कैटल की भी क्लोनिंग करनी चाहिए. इसे देखते हुए राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने 2021 में उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व निदेशक डॉ एमएस चौहान के नेतृत्व में गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का कार्य शुरू हुआ. कैटल क्लोनिंग की काफी चुनौतियां थी. अंडे नहीं थे. ओपीयू तकनीक से अंडों को निकाला था.

कैसे हुआ यह सब

डॉ. नरेश सेलोकर ने बताया कि तीन ब्रीड सलेक्ट की थी. साहीवाल में कुछ असफलताएं हाथ लगी. लेकिन रिसर्च के बाद 16 मार्च 2023 को गिर गाय की क्लोन पैदा हुई हैं. गिर गाय का सेल साहीवाल की ओपीयू से निकाली और उसके बाद केंद्रक निकाल दिया.जिस एनीमल गंगा का क्लोन करना था, गिर का क्लोन उसके अंदर डाला. इस विधि में अल्ट्रासाउंड-निर्देशित सुइयों का उपयोग करके जीवित पशु से अंडाणु लिया जाता है. फिर अनुकूल परिस्थिति में 24 घंटे के लिए परिपक्व किया जाता है। फिर उच्च गुणवत्ता वाले गाय की दैहिक कोशिकाओं का उपयोग दाता के रूप में किया जाता है. जोओपीयू- व्युत्पन्न अंडाणु से जोड़ा जाता है. 7-8 दिन के इन विट्रो-कल्चर के बाद, विकसित ब्लास्टोसिस्ट को गाय में स्थान्तरित कर दिया जाता है. इसके 9 महीने बाद क्लोन बछडा या बछड़ी पैदा होती हैं. क्लोन गायों के उत्पादन के लिए एक स्वदेसी विधि विकसित करने के लिए 2 साल से अधिक समय से काम कर रहे थे.

 

उत्तरांचल क्राइम न्यूज के लिए दिल्ली से ब्यूरो रिपोर्ट

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