चलो चले गांव की ओर… सातवीं किश्त… जंगल में आग लगाकर फारेस्टर, रेंजर से लेकर डीएफओ तक कूटते हैं चांदी
नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड
चलो चले गांव की ओर... गतांक से आगे.. सातवीं किश्त
शाम की आरती के बाद रोहतक से आए मन्ना काका ने खास खास लोगों को अपने यहां जिमा लिया। आज भी लगभग कल जैसा ही डायरेक्टर बोडा के कमरे सा सीन था। बस अंतर इतना था कि मन्ना काका के पुराने मकान में इतनी कुर्सियां नहीं थी कि सभी के ऊपर बैठने की व्यवस्था हो पाती सो बरामदे में चटाई दरी बिछाकर इंतजाम किया गया था। यूं भी मन्ना काका का पुश्तैनी मकान सालभर तो बंद ही रहता है बस, गर्मियों की छुट्टी में जब परिवार पूजा में शामिल होने आता है तो ही दरवाजे के कुण्डी खुलते हैं। इसलिए घर में केवल बहुत ही जरूरत की चीजें जमा कर रखी हैं बस काम चलाने भर के लिए।
खैर दावत के लिए बीच में अखबार को दस्तरखान जैसा बिछाया गया। उसके ऊपर कांच के गिलास, पानी का जग,थाली में प्याज खीरे का सलाद, प्लेट में हरी चटनी वाला नमक व सेब संतरे क...