Thursday, July 31News That Matters

आध्यात्मिक

शक्ति का सही दिशा में प्रयोग ही पुन्य है और गलत दिशा में प्रयोग पाप

शक्ति का सही दिशा में प्रयोग ही पुन्य है और गलत दिशा में प्रयोग पाप

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भगवद चिन्तन ... श्रावण मास-शिव तत्व श्रावण मास में शिव पूजन करते समय चिन्तन करें कि भगवान् शिव अपने हाथ में त्रिशूल रखते हैं। इसका क्या सन्देश है? तीन विकारों को नियंत्रित करता है ये त्रिशूल, काम-क्रोध और लोभ। "तात तीन खल अति प्रवल काम क्रोध और लोभ" काम-क्रोध-लोभ को पूरी तरह समाप्त तो कदापि नहीं किया जा सकता पर, नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। इनको साधा जा सकता है। क्रोध तो शिवजी को भी आता है लेकिन, क्षण विशेष के लिए। कामदेव को भस्म करते समय क्रोधित हुए पर जब कामदेव की पत्नि रति आई तो उसे देखकर द्रवित हो गए। शक्ति का सही दिशा में प्रयोग ही पुन्य है और गलत दिशा में प्रयोग ही पाप है। शिव जी ने अपनी ऊर्जा को नियंत्रित कर रखा है। ऊर्जा का नियंत्रण ही साधना है और यही योग है।...
शिव जी के जीवन में विलास नहीं, संन्यास है, भोग नहीं योग है…

शिव जी के जीवन में विलास नहीं, संन्यास है, भोग नहीं योग है…

आध्यात्मिक
भगवद चिन्तन... श्रावण मास शिव तत्व श्रावण मास में शिव जी के दर्शन करते समय एक बात और सीखने योग्य है। शिव जी के जीवन में विलास नहीं है, संन्यास है, भोग नहीं योग है। इनके चित में काम नहीं राम हैं। इन्होंने कामदेव को भस्म किया है। विषय विष से भी ज्यादा खतरनाक है। विष शरीर को मारता है, विषय आत्मा तक को प्रभावित करता है। विष खाने से केवल एक जन्म, एक शरीर नष्ट होता है पर विषय का चस्का लग जाने पर तो जन्म-जन्मान्तर नष्ट हो जाते हैं। संयम जीवन जीने से आयु भी बढती है। योग के साथ रहने से चित भी प्रसन्न रहता है। विषय आयु को तो नष्ट करता ही है साथ में चित में अशांति और पुनः प्राप्त करने की आशा भी उत्पन्न होती है। आज अति भोगवाद भी व्यक्ति और विश्व की अशांति का प्रमुख कारण है।...
तो हमारा घर भी बन सकता है शिवालय

तो हमारा घर भी बन सकता है शिवालय

आध्यात्मिक
भगवद चिन्तन... श्रावण मास शिव तत्व पवित्र श्रावण मास में शिवार्चन करते-करते एक सूत्र और सीखने योग्य है। भगवान् शिव की गृहस्थी को ध्यान से देखना कि कितने विरोधाभासी लोग भी बड़ी शांति से इस परिवार में रह रहे हैं। माँ पार्वती का वाहन शेर है और शिवजी का नंदी है। शेर का भोजन है वृषभ, लेकिन यहाँ कोई वैर नहीं है। कार्तिकेय का वाहन मोर है और शिवजी के गले में सर्प हैं। मोर और सर्प की लड़ाई भी जगजाहिर है लेकिन, यहाँ ये साथ ही रहते हैं। गणेश जी का वाहन चूहा है और चूहा सर्प का भोजन है। इस परिवार में सब शांति और सदभाव, निर्वैर बिना कलह के जीवन जीते हैं। देश काल, अलग जन्म, अलग जीवन, अलग विचार, अलग उद्देश्य होने के कारण सम्भव है आपकी घर में किसी से न बनें। मतभेद हो जाएँ कोई बात नहीं मनभेद नहीं होना चाहिए। सबकी स्वतंत्र चेतना का सम्मान करते हुए सबको आदर देवें तो हमारा घर भी शिवालय बन सकता है।...
बिना विष पीये, विषमता को पचाए कोई भी महान नहीं बनता

बिना विष पीये, विषमता को पचाए कोई भी महान नहीं बनता

आध्यात्मिक
 भगवद चिन्तन... श्रावण मास शिव तत्व देवाधिदेव भगवान आशुतोष के जीवन से इस श्रावण मास में पूजन करते-करते कुछ सीखने और समझने योग्य है। ये महादेव कैसे हुए? जो अमृत पीते हैं वो देव बनते हैं जो राष्ट्र, समाज और प्रकृति की रक्षा के लिए विष को भी प्रेम से पी जाएँ वो महादेव बन जाते हैं। बिना विष को पीये, विषमता को पचाए कोई भी महान नहीं बन सकता। आज के समय में अमृत की चाह तो सबको है, पर विष की नहीं। बिना विष को स्वीकारे कोई अमृत तक नहीं पहुँच सकता है। संघर्ष, दुःख, प्रतिकूल परिस्थिति, अभाव ये सब तुम्हें निखार रहे हैं। समस्या को स्वीकार करना ही समस्या का समाधान है। कोई भी समस्या तब तक ही है जब तक आप उससे डरते हो और उसका सामना करने से बचते हो। मनुष्य के संकल्प के सामने बड़ी से बड़ी चुनौती भी छोटी हो जाती है।...
श्रेष्ठता व स्वच्छता के साथ कर्म करना ही योग

श्रेष्ठता व स्वच्छता के साथ कर्म करना ही योग

आध्यात्मिक
भगवद चिन्तन योगस्थ: कुरुकर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय सिद्धय सिद्धयो:समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते! हमारे व्यावहारिक जीवन में योग का क्या साधन है अथवा व्यावहारिक जीवन में योग को कैसे जोड़ें? इसका श्रेष्ठ उत्तर केवल गीता के इन सूत्रों के अलावा कहीं और नहीं मिल सकता है। गुफा और कन्दराओं में बैठकर की जाने वाली साधना ही योग नहीं है। हम अपने जीवन में, अपने कर्मों को कितनी श्रेष्ठता के साथ करते हैं, कितनी स्वच्छता के साथ करते हैं बस यही तो योग है। गीता जी तो कहती हैं कि किसी वस्तु की प्राप्ति पर आपको अभिमान न हो और किसी के छूट जाने पर दुःख भी न हो। सफलता मिले तो भी नजर जमीन पर रहे और असफलता मिले तो पैरों के नीचे से जमीन काँपने न लग जाये। बस दोंनो परिस्थितियों में एक सा भाव ही तो योग है। यह समभाव ही तो योग है।...