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कवि पागल फकीरा की एक रचना… एक यार का अरमां है, हूरों में रवानी है…

कवि पागल फकीरा की एक रचना… एक यार का अरमां है, हूरों में रवानी है…

राष्ट्रीय
पागल फकीरा -------------------------------- एक यार का अरमां है, हूरों में रवानी है, बन्दगी छोड़ कुछ ही नहीं, ये तो मेरी ज़िन्दगानी है। कभी हँसकर रोना है, कभी रोकर हँसना है, ज़िन्दगी का मतलब तो, जीना और मरना है, एक दिन तो ज़िन्दगी में, ख़ुशियाँ मनानी है, बन्दगी छोड़ कुछ ही नहीं............ तू कली है गुलशन की, मैं भँवरा मस्ताना हूँ, तू मेरी दीवानी है, मैं तेरा दीवाना हूँ, हम पागल आशिक़ है, तू फूलों की रानी है, बन्दगी छोड़ कुछ ही नहीं............ आँखों को रोना है, रो कर सूख जाना है, आक्रंद है ये कुछ क्षण का, रो कर चुप होना है, तन्हाईयाँ कह जाती, कह जाती कहानी है, बन्दगी छोड़ कुछ ही नहीं............ जो छीन गया है वो, अब प्यार न आयेगा, इस दिल में सिवा तेरे, कोई यार न आयेगा, दिल तोड़ दिया तुमने, बरबाद जवानी है, बन्दगी छोड़ कुछ ही नहीं............ तुम साज़ न दो मेरा, कहन...