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Tag: धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’

युवा कवि धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली कविता… यू कोराना कू काल छ

राष्ट्रीय
धर्मेंद्र उनियाल 'धर्मी' चीफ़ फार्मासिस्ट, अल्मोड़ा ------------------------------------- यू कोराना कू काल छ, फूटियूं सबूकू कपाल छ। कैकी ह्वईं मुखडी सफेद, कैकी पट कैक लाल छ। १ यू कोराना कू काल छ, फूटियूं सबूकू कपाल छ। होटल वाला भूखा मरना, गौं मा मजूरी ध्याड़ी करना। कैमा नी छ आटू न चौंल, कैमा भुज्जी न दाल छ।२ यू कोराना कू काल छ। कुछ मरयन अस्पतालू मा, कुछ सरकारी फेर जालू मा भैर त सब भलू बतौणा पर भीतर बुरू हाल छ।३ यू कोराना कू काल छ। काम धंधा चौपट ह्वैग्यन, लक्ष्मण रेखा चौखट ह्वैग्यन जनू पिछल्यू साल गुजरी, यू भी त वनी साल छ।४ यू कोराना कू काल छ। मंहगाई की रेल निकली, हमारू तुम्हारु तैल निकली। अर्थव्यवस्था डूबी गै पर, मंहगाई त मा उछाल छ।५ यू कोराना कू काल छ। स्कूलू मा लग्यां ताला, काई सेंवालू मोटा जाला फीस त हम तैं देण पड़ी। यू ऑनलाइन क...

युवा कवि धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली कविता …. नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी

राष्ट्रीय
धर्मेंद्र उनियाल 'धर्मी' अल्मोड़ा, उत्तराखंड ----------------------------------------- अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी? नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू चैंदू सरकारी। समुह 'ग' ठप्प पडयू छ, फार्मासिस्ट मा लगी स्टे, तुम्ही बोला दीदा भुलो कैं भर्ती मा करूं अप्ले। M.sc, B.ed की डिग्री मेरी, कै काम नी औणी अब कन कै बणलू मास्टर मैं, कन कै पुलिस मा सिपै। न मैं लेखपाल बण्यो, न जेई न पटवारी। अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी? नौनी वाला बौना हम तैं नौनू चैंदू सरकारी। मां बाबू न पढ़ाई-लिखाई, अपणू पेट काटी-काटी आफ्फू थामी त्युन बल्द बाछरू, मैं थमाई त्युन पाटी पढ़ी-लिखी तैं सोची मैन, अब त साहब बणी जौलू शायद चकडैत बणी जाऊ, मेरी किस्मत काली लाटी । पर भाग मेरू सयूं सुनिंद, मैं करणू तेकी चौकीदारी अपनी पीड़ा कैम लगौं, कै बिंगौं ईं लाचारी? नौनी वाला बौना हम तैं, नौनू...