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युवा कवि आचार्य मयंक सुन्द्रियाल की रचना… रत्न प्रभा सी भाषित होती

युवा कवि आचार्य मयंक सुन्द्रियाल की रचना… रत्न प्रभा सी भाषित होती

राष्ट्रीय
आचार्य मयंक सुन्द्रियाल पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड ----------------------------------------------- रत्न प्रभा सी भाषित होती वह तरणी के तट जो तीर धवल वर्ण की पारदर्शिता हिमखंडों से जस छलकता नीर।।१।। दीर्घ केशों का वह उलझन दरबान बनी हैं मुख पे लटकन मृगनयनों से तो अहर्निश छूटते हैं मन्मथ के वो तीर ।।२।। रत्न प्रभा.......... निशिकर मानो दिवस दिप्त हो प्रभाकर सा स्वर्गिक पुंज लिए दो सूर्य खिले हैं आज व्योम में उस उपत्यका के सम तीर ।।३।। रत्न प्रभा....... क्या एक हुये हैं धरती अंबर या अरूणप्रिया कोई उतरी है ब्रह्म लावण्य भी रिक्त हुआ जो रूप कपोलों में दधिसार।।४।। रत्न प्रभा...….. सहसा झोंका वो हवा का चेतना के स्वर ले आया है मेघा की बूंदों से सिंचित होता तन मन मेरा उस तरणी के तीर ।।५।। रत्न प्रभा......  ...