चलो चले गांव की ओर… पांचवी किश्त… अमा यार वो नत्था नहीं.. नेपालियों की कच्ची बोल रही थी…
नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड
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चलो चले गांव की ओर… गतांक से आगे… पांचवी किश्त
चली गयी चौकड़ी दारू पीकर पत्नी ने कमरे की सफाई करते हुए बोडा को ताना मारा। अमा यार तू भी…, साल भर में एक बार गांव आना होता है भाई बंधो के पास, दो घड़ी बैठ लिए तो कौन सा जुल्म कर दिया।
बात बैठने की नहीं है ताई तमतमाते स्वर में बोली। तो फिर क्या बात है, आगबूला क्यों हो रही हो? क्या-क्या बोले जा रहे थे नशे की झोंक में, मैं बगल में सब सुन रही थी ताई का आवेश कम होने वाला नहीं लग रहा था।
क्या बोला मैंने, नशे की लहर में बोडा का पौरुष भी बैकफुट में आने को तैयार न था। मैं दिलाता हूं नत्था को हरियाणा से चार जर्सी गाय, उससे कहो गाय पाले, गांव में डेरी खोले .. मैं हार्टीकल्चर व फौरेस्ट डिपार्टमेंट में भी बात करूंगा, वहां से पौध दिलवाऊंगा, उससे कहो फलदार वृक्ष लगाए, फल बहुत महंगे बिक रहे हैं बाजार में, फलों का व्यापार कराओ उससे और भी न जाने क्या-क्या फेंके जा रहे थे ताई का अटैक जारी था।
ऐसा बोलकर गाली दे दी क्या? बोडा के अकड़ीले स्वर में अब डायरेक्टरी का रौब उफान पर आने लगा था।
भई अपने परिवार कुटुम्ब का है.. खाली बेरोजगार घूम रहा है हमारी मदद से पैर जम जाएंगे, चार पैसे कमाएगा तो एहसान ही मानेगा न।
हां, एहसान मानेगा जरूर मानेगा एहसान, कल शाम को चौक में एहसान ही तो जता रहा था जब सारे गांव वालों के सामने चिल्ला रहा था…
बौत बने हैं आज गांव वाले…., शहरों में गर्मी से परेशान हुए तो गांव चले आए घूमने….। ये तुम्हारे लिए गांव नहीं है केवल सैरगाह है… सैरगाह…, तुम व तुम्हारे बच्चे तफरी करने आते हैं यहां….। बौत लाड़ प्यार दिखा रै हो अपनों पर…., दो दिन रह कर शहर लौट जाओगे, वहां की चकाचौंध में गांव वाले याद नी आएंगे….। यहां हमारे घर के गरीब बच्चों को अपने पुराने कपड़े बांटकर दरियादिली दिखाने की जरूरत नहीं है, बौत बनते हैं बड़े आदमी…..सारे गांव ने एहसानमंदी सुनी थी उसकी… ताई ने ताबड़तोड़ अटैक किए।
अमा यार वो नत्था नहीं बोल रा था वो नेपालियों की कच्ची बोल रही थी तू इत्ती बात नहीं समझती है। डायरेक्टरी अब संधि विराम के मूड में आती दिखी।
नंबर एक दरोळा है वो, उसकी मदद करना अपने लिए गढ्ढा खोदना है। दो साल पहले नरू ने उसे बैंक से लोन देकर टाटा सूमो दिलायी थी, सोचा था कोटद्वार सतपुली टैक्सी चलाएगा।
क्या हुआ सभी को पता है जेवर बेचकर किश्तें भरीं उसके घरवालों ने ताई कम्पलीटली डोमिनेटिंग मुद्रा में आ गयी।
फ्लाप हो जाने का मतलब सरेण्डर कर दिया जाय, झटके तो आते हैं लाइफ में, नत्था को सपोर्ट करके एक और मौका देते हैं डायरेक्टर साहब भी इक तरफा पाला छोड़ने को तैयार न थे।
मेरे मायके वालों को जरूरत पड़ने पर तुम्हारी ये दरियादिली कहां गुम हो जाती है… यहां अपनों के लिए खजाना लुटाने को हांके जा रहे हो… चलो अब खाना खाने आ जाओ ठण्डा हो रहा है कहते हुए ताई रसोई में चली गयी।