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वरिष्ठ कवि डॉ ब्रम्हानन्द तिवारी “अवधूत” एक गीत…. बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें…

वरिष्ठ कवि डॉ ब्रम्हानन्द तिवारी “अवधूत” एक गीत…. बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें…

राष्ट्रीय
डॉ ब्रम्हानन्द तिवारी "अवधूत" मैनपुरी, उत्तर प्रदेश ------------------------------------- ये घटा घनघोर तड़पाती हमें। बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें। मोर ,दादुर और पपीहे बोलते, अब बो धरा में नित्य अमृत घोलते विरह अगिन हरपल जलाती है हमें बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें। आ जाओ पुरबैया का अब तो जोर है अम्बर-धरा का ये मिलन चहुँओर है याद परदेशी की तड़पाती हमें बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें। राह तकते दिन गुजरता है नहीं ले जाओ हमको अब यहाँ से तुम कहीं, हर बूँद सावन की जलाती है हमें बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें। दामिनि दमकती तो धड़कता दिल मेरा, बिरहा अगिन का ख्याल है साजन मेरा ब्रम्हानन्द तड़पाती जुदाई अब हमें। बरखा ऋतु तुम बिन नहीं भाती हमें।।...