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Tag: “पागल फ़क़ीरा”

वरिष्ठ कवि पागल फ़क़ीरा की एक ग़ज़ल… मुझको पत्थर दिल से मोहब्बत हुई है…

वरिष्ठ कवि पागल फ़क़ीरा की एक ग़ज़ल… मुझको पत्थर दिल से मोहब्बत हुई है…

राष्ट्रीय
पागल फ़क़ीरा मुझको पत्थर दिल से मोहब्बत हुई है, मुझसे इश्क़ में थोड़ी सी शरारत हुई है। मुझ पर लगी तोहमत की ख़ातिर ही तो, मोहब्बतों के दुश्मन से बग़ावत हुई है। तुम्हारी ग़म-ए-जुदाई में तड़पता रहता हूँ, मुझे ख़ुद अपने आप से नफ़रत हुई है। प्रेमियों के जुदाई का दर्द दूर करने को, मुक़द्दस रूह से थोड़ी सी शराफ़त हुई है। मोहब्बत को भूल गई तू गैर की ख़ातिर, मुझको दिल जलाने की आदत हुई है। तुम्हारे नाम कर चुका था ज़िन्दगी सारी, इश्क़ में मेरे नाम की फ़जीहत हुई है। इश्क़ को फ़क़ीरा ने अपना ख़ुदा बनाया, उस ख़ुदा की थोड़ी सी इबादत हुई है।  ...
“पागल फ़क़ीरा” की एक ग़ज़ल  … मैंने घर वापसी का कभी ऐसा मंज़र नहीं देखा…

“पागल फ़क़ीरा” की एक ग़ज़ल … मैंने घर वापसी का कभी ऐसा मंज़र नहीं देखा…

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"पागल फ़क़ीरा" भावनगर, गुजरात ------------------------------- मैंने घर वापसी का कभी ऐसा मंज़र नहीं देखा, दिल में गड़ा है जो वो यादों का खंडहर नहीं देखा। हिजरत करने वालों के ऊपरी ज़ख़्म देखने वालों, आपने कभी राहगीरों के घाव के अंदर नहीं देखा। इतनी मुश्किल हालातों के बीच भी हिन्दुस्तान में, कभी इन्सानियत की ज़मीन को बंजर नहीं देखा। मजबूर है पर मग़रूर नहीं देखा मज़दूर को कभी, ग़रीबी में भी उनकी आँखों में समन्दर नहीं देखा। मुझे तो आश थी सिर्फ़ अपने ही एक वफ़ादार की, "फ़क़ीरा" ने आस्तीन में छुपा वो खंज़र नहीं देखा।...
“पागल फ़क़ीरा” की एक ग़ज़ल    … मेरी फ़ज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है…

“पागल फ़क़ीरा” की एक ग़ज़ल … मेरी फ़ज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है…

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"पागल फ़क़ीरा" भावनगर, गुजरात --------------------------------   मेरी फ़ज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है, वहाँ हो तुम यहाँ पे हम बेक़रार आज भी है। मेरी फ़ज़र को तेरा.......... वो शोखियाँ वो अदायें के तुम दिखे थे वहाँ, तेरी अदा का वहीं पर निग़ार आज भी है। मेरी फ़ज़र को तेरा.......... न चाहे सोच के क्यों तुमको ये हुआ अरमान, फ़िर मेरे तन पे चली तलवार आज भी है। मेरी फ़ज़र को तेरा.......... ओ यार तेरे लिये हमने तोड़ दी बेड़ियाँ, जफ़ा की बात पे पागल वो यार आज भी है। मेरी फ़ज़र को तेरा.......... हटी नहीं है नज़र नाज़ वो ये करता है, मेरे कलाम से शायद अग़्यार आज भी है। मेरी फ़ज़र को तेरा.......... न पूछ किसने सोहबत में नज़्म गाये है, कि तुमको छोड़ के हम सोग़वार आज भी है। मेरी फ़ज़र को तेरा.......... फ़क़ीरा ये ज़िन्दगी हमको न रास आई है, लगाने गले हम मौत को तैयार आज भी है। मेरी फ़ज़र को ...