Sat. Oct 19th, 2024

जमीन की भीतरी परत खोलेगी जोशीमठ के भू-गर्म में छुपे राज, जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण शुरू |

जमीन की भीतरी परत खोलेगी जोशीमठ के भू-गर्म में छुपे राज, जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण शुरू |

जमीन की भीतरी परत खोलेगी जोशीमठ के भू-गर्म में छुपे राज, जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण शुरू |

जमीन की भीतरी परत खोलेगी जोशीमठ के भू-गर्म में छुपे राज, जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण शुरू |

जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण का काम जोशीमठ में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, आईआईटी रुड़की, राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद के वैज्ञानिकों की टीम की ओर से किया जाएगा।

जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर किए जा रहे तमाम अध्ययनों के बीच जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण काफी अहम हैं। इनसे यह स्पष्ट हो पाएगा की जोशीमठ में जमीन के भीतर पानी का प्रवाह किस रास्ते पर है। वह कितना दबाव उत्पन्न कर रहा है और कहां फूटकर जमीन से बाहर निकलने की संभावना है।

जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण का काम जोशीमठ में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, आईआईटी रुड़की, राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद के वैज्ञानिकों की टीम की ओर से किया जाएगा। जियोफिजिकल सर्वे से जमीन में मौजूद पानी में सिल्ट और क्ले की स्थिति का भी पता चल सकेगा। इस संबंध में भू-विज्ञानी डॉ. एके बियानी ने बताया कि जैसा कि पूर्व में हुए वैज्ञनिक शोधों में स्पष्ट हो गया है कि जोशीमठ ग्लेशियर मड के ऊपर बसा है। साफ है कि इस मड की मोटाई अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होगी। अगर यह गतिमान है तो उसकी गति की दिशा कौन सी है। इस काम में एनजीआरआई हैदराबाद की विशेषज्ञता है।
बीते दिनों इसरों ने भी इस संबंध में सेटेलाइट इमेजरी के माध्यम से बताया था कि जोशीमठ में जमीन 27 दिसंबर से आठ जनवरी के बीच 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर धंसी है, लेकिन इस रिपोर्ट में धंसने की दिशा का उल्लेख नहीं किया गया था। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि जोशीमठ में भू-धंसाव क्षैतिज है या सामांतर।

वहीं, जियोटेक्निकल सर्वेक्षण में मिट्टी और चट्टानों का अलग-अलग परीक्षण होता है। लैब में परीक्षण से प्राप्त नतीजों के अधार पर भू वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परीक्षण स्थल की भार वहन क्षमता कितनी है। इस प्रकार के सर्वेक्षण जियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया भू वैज्ञनिक संस्थान, आईआईटी रुड़की, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की और डीबीएस पीजी कॉलेज देहरादून की ओर से किए जाते हैं।

क्या होता है जियोफिजिकल सर्वे
यह सर्वेक्षण भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित होता है। इसमें जमीन के भीतर की स्थिति का आकलन किया जाता है। जैसे वह किस प्रकार के पदार्थ, शैल अथवा मिट्टी की बनी है। कहां पर उसमें छिद्र, गुफाएं या दरारें हैं। इसके अलावा कोई ताल या पानी कहां पर और कितनी गहराई में है। पानी का प्रवाह किस ओर है। गहराई के साथ चट्टानों और मिट्टी में किस प्रकार का अंतर आ रहा है। भू-विज्ञान की यह शाखा आजकल बहुत उन्नत हो चुकी है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को ढूंढने में किया जाता है। इस प्रकार के सर्वे में विषय विशेषज्ञ घनत्व, चुंबकीय गुण, विद्युत प्रतिरोधकता और नम्यता (इलास्टिसिटी) जैसे गुणों के आधार पर करते हैं।

क्या होता है जियोटेक्निकल सर्वेक्षण
धरती की सतह और कम गहराई में पाई जानी वाली मिट्टी और चट्टानों की जांच जियोटेक्निकल सर्वे में की जाएगी। इसमें विभिन्न तथ्यों जैसे उनका वास्तविक और आभासी घनत्व क्या है, इतने प्रतिशत रंध्रता (पोरोसिटी) है। रंध्रों में कितने एक-दूसरे से जुड़े हैं, जिसके कारण पानी धरती के भीतर प्रवाह करता है। मिट्टी और चट्टानों की भार वहन क्षमता कितनी है, कितना दबाव लगने पर वह टूटना शुरू करेंगी, टूटने पर उनका व्यवहार क्या होगा। अगर मिट्टी और चट्टान कमजोर हैं तो उन्हें किस प्रकार मजबूती दी जा सकती है। मिट्टी और चट्टानों का दबाव बढ़ने की अवस्था में अल्प और दीर्घकाल में किस तरह के परिवर्तन होंगे। भूकंप के प्रभावों को झेलने की क्षमता कितनी है। जैसे परीक्षण इस तकनीक में किए जाते हैं।

जोशीमठ की वर्तमान स्थिती को देखते हुए पूरे क्षेत्र का बहु-विविधता (मल्टी डिसीप्लीनरी) सर्वेक्षण आवश्यक है। इसमे भू विज्ञान जिओफिजीकल, हाइड्रोलॉजिकल, जियोडेटिक सर्वेक्षण, सुदर संवेदन का समावेश होना आवश्यक है। इन सर्वेक्षणों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर काफी हद तक जोशीमठ में उपजे संकट का पता लगाने के साथ ही उनके निदान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।

जोशीमठ में भू-धंसाव के अलावा पूरे क्षेत्र का जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वे किया जाएगा। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों ने जियोफिजिकल सर्वे शुरू कर दिया है, जबकि राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) की टीम भी जोशीमठ पहुंच गई है। इसके अलावा जोशीमठ में भौगोलिक सर्वेक्षण पहले ही शुरू हो चुका है। इस सब कामों में अभी समय लगेगा। क्योंकि मिट्टी के नमूनों को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा जाएगा। विश्लेषण के बाद ही डेटा तैयार हो पाएगा।

उत्तराँचल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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