भू-माफियाओं की भेंट चढ़ते जा रहे आम और लीची के बाग-बगीचे
वन विभाग और माफियाओं की मिलीभगत से फलदार और छायादार वृक्षों पर चलती रही है आरियां!
देहरादून- एक समय था, जब देहरादून लीची, चाय तथा बासमती चावल की पैदावार को लेकर अपना अलग ही उच्च स्थान बनाए हुए था, लेकिन धीरे-धीरे अब यह अपना-अपना अस्तित्व समाप्त करते हुए नजर आ रहे हैं | आज न चाय है, न बासमती चावल है और न ही आम और लीची के पर्याप्त बाग बगीचे ही बचे हैं | देहरादून की मशहूर लीची अब काफी कम ही दिखाई देती है, क्योंकि भू-माफिया यह सब कुछ चट कर गए हैं और बचा हुआ चट करने में लगे हुए हैं| देश ही नहीं, विदेशों में भी देहरादून की मशहूर लीची काफी प्रसिद्ध रही है| आज इन्हीं लीची के पेड़ों का जिस तरह से सफाया किया जा रहा है और संबंधित वन विभाग के अधिकारी तथा स्वयं सरकार इस तरफ अपनी गंभीरता से मुंह मोड़े हुए है, वह वास्तव में देहरादून की प्रसिद्ध लीची से अब कोसों दूर का हाशिया बना रहे हैं | डालनवाला, भंडारी बाग, पथरी बाग, माता वाला बाग, राजपुर, रायपुर के अलावा और भी कई ऐसे स्थान देहरादून जिले के हैं, जहां पर राज्य निर्माण से कुछ समय पहले तक ही आम और लीची के बड़े-बड़े बाग बगीचे हुआ करते थे | करीब दो दशक के समय अंतराल में लीची के बाग बगीचों को काफी तेजी के साथ समाप्त किया जा चुका है और मौजूदा समय में जो लीची के वृक्ष अथवा बाग बगीचे है भी तो, उन पर भी संकट मंडरा रहा है उन पर भी भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टि वाली नजरें जमी हुई है |भू माफियाओं ने लीची व आम के बागों पर आरियों को चलाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है | बताया जाता है कि इन भू माफियाओं को समय-समय पर ऐसे कार्यों के लिए संरक्षण हासिल होता रहा? यही कारण रहा है कि आज देहरादून में लीची के बाग बहुत ही कम दिखाई दे रहे हैं| सवाल यह है कि आखिर इन सब के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?
उत्तरांचाल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |