झुग्गी-झोपड़ियों में बसने वालों का सत्यापन क्यों नहीं?
राजधानी दून में अनेक स्थानों पर झोपड़पट्टी में जीवन यापन कर रहे हैं सैकड़ों परिवार|
देहरादून- उत्तराखंड राज्य में अनेक सरकारी संस्थान एवं शिक्षण संस्थान ऐसे हैं, जिनकी सुरक्षा अति महत्वपूर्ण है | यहीं से प्रतिवर्ष कई सेना के जवान और अधिकारी बनकर देश की रक्षा-सुरक्षा के लिए अपने कदम आगे बढ़ाते हैं तो वही शिक्षा का हब कहे जाने वाले इस उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून में कई उच्च स्तर की शैक्षणिक संस्थाएं भी मौजूद हैं जो कि हजारों-लाखों युवाओं का भविष्य प्रत्येक वर्ष बनाती है, लेकिन इस देहरादून में जगह-जगह असामाजिक तत्व तथा संदिग्धों के गुजर-बसर होने के कारण असुरक्षा का भाव उत्पन्न होने का अंदेशा बना रहता है | भारतीय सैन्य अकादमी, भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, लाल बहादुर शास्त्री अकैडमी, भारतीय सर्वेक्षण विभाग आदि के साथ ही दून स्कूल व अन्य शैक्षणिक संस्थान, विश्वविद्यालय भी हैं जिनकी सुरक्षा के लिए व्यापक पुख्ता प्रबंध रहते हैं, परंतु बावजूद इसके सुरक्षा में चूक होने का अंदेशा पुलिस प्रशासन को बना रहता है| इसी सुरक्षा व्यवस्था के चलते कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना बहुत ही आवश्यक होता है, जिसके तहत सर्वप्रथम उन झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले परिवारों के सदस्यों पर नजर होनी चाहिए, जो कि संदिग्धता उत्पन्न करते हैं |जगह-जगह डेरा डालकर रहने वाले ऐसे लोगों अथवा परिवारों के सत्यापन आखिर कितने हो रहे हैं? इसका पुलिस-प्रशासन को स्वयं ही इल्म है | जब-जब भारतीय सैन्य अकादमी में प्रतिवर्ष होने वाली परेड की तिथि नजदीक आती है अथवा घोषित होती है तब-तब पुलिस-प्रशासन और खुफिया एवं सतर्कता विभाग के अफसरों को सत्यापन की याद आ जाती है, ताकि सैन्य अकादमी की परेड में सुरक्षा की दृष्टि से किसी तरह की चूक नहीं हो पाए | आगामी 11 जून को भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड होने जा रही है, जिसके लिए पुलिस-प्रशासन तथा समूचा सुरक्षा तंत्र मुस्तैद होकर अपने कार्य में जुट गया है|अक्सर ऐसा देखा गया है कि लोकल स्तर पर दूर-दराज के स्थानों पर झुग्गी-झोपड़ी डालकर अस्थाई रूप से बसने वाले लोगों अथवा परिवारों का सत्यापन करने की जहमत नहीं उठाई जाती है | जिससे कि पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगने शुरू हो जाते हैं सुरक्षा के लिहाज से मुख्य रूप से सार्वजनिक स्थानों पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिसमें आईएसबीटी अथवा बस अड्डा, रेलवे स्टेशन सर्वप्रथम आते हैं| इन दिनों राजधानी देहरादून स्थित आईएसबीटी के नजदीक झुग्गी झोपड़ी डालकर काफी परिवार झोपड़ियों में बसे हुए हैं I मिली जानकारी के अनुसार, इन परिवारों ने पहले अपना डेरा आईएसबीटी ओवर ब्रिज के नीचे बनाया हुआ था, लेकिन अब इनमें से कई परिवार पास में ही आईएसबीटी से सटे हुए एमडीडीए के बहुमंजिला फ्लैट के नजदीक सरकारी खाली पड़ी भूमि पर झोपड़ियां डालकर बसे हुए हैं | इसके अलावा हरिद्वार बाईपास के दूसरी तरफ भी कई परिवार झुग्गी-झोपड़ी में बसे हुए हैं| इसके अलावा अन्य अनेक स्थानों पर भी ऐसे ही परिवारों के गुजर बसर होने अथवा डेरा डाल कर रहने के मामले बताए जा रहे हैं, जो कि कहीं ना कहीं संदिग्धता उत्पन्न कर रहे हैं | इन सभी परिवारों का सत्यापन भी सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है | महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर खाली पड़ी हुई जमीनों अथवा सरकारी भू संपत्तियों पर झुग्गी झोपड़ियां डालने में लापरवाही अथवा ढील क्यों बरती जाती है?
उत्तरांचल क्राईम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |