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देहरादून-टिहरी आपदा पर आपदा प्रबंधन और मौसम विभाग आमने-सामने, एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे है |

देहरादून-टिहरी आपदा पर आपदा प्रबंधन और मौसम विभाग आमने-सामने, एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे है |

देहरादून व टिहरी जिले में 19 अगस्त को प्राकृतिक आपदा से हुई जानमाल की हानि को कुछ हद तक कम किया जा सकता था, लेकिन सरकारी सिस्टम सोया रहा। उच्चाधिकारियों के स्तर पर सवाल उठने के बाद अब मौसम विज्ञान विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी एक-दूसरे के आमने-सामने हैं और एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

मौसम विभाग का दावा है कि उसने देहरादून के आसपास अतिवृष्टि का अलर्ट जारी कर दिया था। मगर शासन का कहना है कि उसे मौसम का पूर्वानुमान तो भेजा गया, लेकिन वे स्थान चिन्हित नहीं किए गए, जहां भारी से भारी बारिश होने का पूर्वानुमान था। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में मौसम विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग का अहम रोल है। लेकिन इस मामले में दोनों विभागों में तालमेल की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। मौसम विज्ञान विभाग का कहना है कि उनकी ओर से समय पर स्टेट डिजास्टर कंट्रोल रूम को सूचना दे दी थी। लेकिन कंट्रोल रूम ने उनकी सूचना को हल्के में लिया।
मौसम विज्ञान विभाग की मानें तो पहले नैनीताल, चंपावत, यूएसनगर और देहरादून के लिए यलो एलर्ट जारी किया था। लेकिन, 19 अगस्त की रात नौ बजे इसे ऑरेज अलर्ट में तब्दील कर इसमें टिहरी और पौड़ी जिले को भी जोड़ दिया गया। इस अलर्ट में अगले तीन घंटे भारी बारिश बताई गई। प्रदेश में इस दौरान तेज बारिश पहले से जारी थी। तीन घंटे बीतने के बाद रात 12 बजकर 49 मिनट पर अगले तीन घंटों के लिए फिर अलर्ट जारी किया गया और इसमें नैनीताल जिला भी जोड़ दिया गया। रात दो बजकर 39 मिनट पर कंट्रेाल रूम को सरखेत में अतिवृष्टि की सूचना मिल चुकी थी।

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इसके बाद सुबह तीन बजे फिर अलर्ट जारी किया गया और इन सभी जिलों के साथ अल्मोड़ा और चंपावत भी जोड़ दिए गए। इधर, आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि बहुत कम समय में जो अलर्ट प्राप्त हुए, वह पीडीएफ फॉर्मेट में थे। इसमें जिला तो बताया गया था, लेकिन चिह्नित स्थलों का जिक्र नहीं था। यदि मौसम विज्ञान विभाग जीआईएस बेस्ड वेब मैप के जरिये सूचना भेजता तो उससे लोकेशन भी पता लग जाती। इसके बाद संबंधित क्षेत्र विशेष में अलर्ट जारी किया जा सकता था।
19 अगस्त की रात हमने हर तीन घंटे में अलर्ट जारी किए। इसमें यलो जोन, रेड जोन भी अंकित किए गए थे। इतना ही नहीं ड्यूटी ऑफिसर की ओर से तीन बार फोन कर भी सूचना दी गई थी। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र में उस वक्त जो भी कर्मचारी-अधिकारी ड्यूटी पर रहा होगा, उसकी जिम्मेदारी बनती थी कि वह सूचना को आगे प्रेषित करे।
मौसम विज्ञान विभाग की ओर से हमें जो अलर्ट मिले, वह जिलेवार थे। उसमें कहीं भी पिन प्वाइंट अंकित नहीं थे। यदि ऐसा होता तो संबंधित स्थानों पर लोगों को अलर्ट कर दिया जाता। इस संबंध में शासन में हुई बैठक में यह बात पहले ही स्पष्ट हो चुकी है। आगे से मौसम विज्ञान विभाग से डब्ल्यूएमएक्स फॉर्म में यह जानकारी आपदा प्रबंधन विभाग को उपलब्ध कराई जाएगी। ताकि इसे जीआईएस मैप के साथ ओवरलैप किया जा सके।
उत्तराँचल क्राइम न्यूज़ के लिए ब्यूरो रिपोर्ट |

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